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________________ संघ भेद ४४१ दीघनिकायकी टीकामें बुद्ध घोषने गोशालकका मत दिया है कि वह मनुष्योंको छ विभागोंमें विभाजित करता था। किन्तु गुंतरनिकायमें उस मतको पूरण काश्यपका मत माना है । ( इ० इ० रि, जि० १, पृ० २६२) बौद्ध ग्रन्थोंके उक्त उल्लेखोंसे यह प्रकट होता है कि मक्ख ल गोशालक और पूरण कश्यपके मतोंमें कुछ समानता थी । शायद इसीसे भ्रमवश दोनोंको एक समझ लिया गया। मक्खलि गोशालकके जीवनके विषयमें बौद्ध साहित्यमें जो कथा मिलती है वह हम लिख आये हैं उससे मिलती जुलती हुई कथा पूरण काश्यपके जीवनके विषयमें भी मिलती है। लिखा है'यह एक म्लेच्छ स्त्रीके गर्भसे उत्पन्न हुआ था। उसका नाम काश्यप था। इस जन्मसे पहले वह ६६ जन्म धारण कर चुका था। वर्तमान जन्ममें उसने सौ जन्म पूर्ण किये थे, इस कारण लोग उसको पूरण काश्यप कहने लगे थे। उसके स्वामीने उसे द्वारपालका काम सौंपा था। परन्तु वह उसे पसन्द नहीं आया और वह नगरसे भागकर बनमें रहने लगा। एक बार चोरोंने उसके वस्त्र वगैरह छीन लिये। परन्तु उसने कपड़ोंकी परवाह नहीं की और वह नंगा ही रहने लगा। उसके बाद वह अपनेको पूरणकाश्यप बुद्धके नामसे प्रकट करने लगा और कहने लगा कि मैं सर्वज्ञ हूँ। एक बार जब वह नगरमें गया तो लोग उसे वस्त्र देने लगे, परन्तु उसने लेनेसे इन्कार कर दिया और कहा-'वस्त्र लज्जा निवारणके लिये पहने जाते हैं और लज्जा पापका फल है। मैं अर्हत् हूँ और सब पापोंसे मुक्त हूँ इसलिये मैं लज्जासे अतीत हूँ।' लोगोंने काश्यपके कथनको ठीक माना और उसकी पूजा की। उनमेंसे पाँच सौ मनुष्य उसके शिष्य हो गये। सारे जम्बू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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