SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका है। दोनोंमें गोशालकको मस्करी नहीं कहा । और मंखलि या मक्खलि और मस्करी ये दोनों शब्द स्वतन्त्र हैं । किन्तु दोनोंमें कुछ इस प्रकारका साम्य है, जिससे मंखलि या मक्खलि मस्करीका भ्रष्ट रूप लगता है और शायद इसीसे दोनों को एक समझ कर गोशालकके लिये मस्करी शब्दका व्यवहार प्रचलित हो गया। ____ वराहमिहिर ( ई० ५५० ) ने अपने वृहज्जातक' ( १५-१) और लघुजातक ( १२-१२) में ७ प्रकारके साधुओंका निर्देश किया है, जिनमें आजीविक भी हैं। वराहमिहिरके टीकाकार भट्टोत्पलने ( ई० ६५० ) कालिकाचार्यके एक पद्यके आधार पर आजीविकोंको एकदण्डी बतलाया है। उसने लिखा है कि एकदण्डी अथवा आजीविक नारायणके भक्त थे। हषचरितमें बाणभट्टने मस्करिका निर्देश किया है। डा० बरुआका कहना है कि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि हर्षचरितका 'मस्करी' वराहमिहिरके आजीविकका ही स्थानापन्न है। जब कि टीकाकारके अनुसार मस्करी परिव्राजकका तुल्यार्थक है। किन्तु डा. अग्रवालका लिखना है कि 'वस्तुतः मस्करी भिक्षु ही उस समय पाशुपत थे। पाशुपत भैरवाचार्य और उनके शिष्यको बाणने मस्करी कहा है ( ह. च०, पृ० १६१)। शीलांकने भी एकदण्डियोंको शिवभक्त बतलाया है । किन्तु पाँचवें उछवासमें १ 'एकस्थैश्चतुरादिभिर्बलयुतैर्जाता पृथग्वीर्यगैः । शाक्याजीविकभिक्षवृद्धचरका निग्रन्थवन्याशनाः॥' २ 'तापस वृद्ध श्रावक रक्तपटाजीविभिक्षचरकाणाम् निम्रन्थानां चार्कात् पराजितैः प्रच्युतिलिभिः ॥१२॥' ३ भां० ई पत्रिका, जि० ८, पृ० १८४ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy