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जै० सा० इ० पूर्व-पीटिका
नन्दवात्स्य और कृश सांकृत्य अचेल परिव्राजक सम्प्रदाय के होते तो वह तो कमसे कम उन्हें आजीविकों का मार्ग दर्शक न बतलाता । दूसरे, ऊपर तीनोंका जिस रूप में निर्देश किया गया है उससे यह भी स्पष्ट नहीं होता कि नन्दवात्स्य और कृश सांकृत्य दोनों पूर्व में हो चुके थे प्रत्युत 'यह' शब्द से तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों भी उस समय वर्तमान थे । हाँ, मक्खलि गोशालका नाम अन्त में होने से यह अनुमान अवश्य किया जा सकता है कि वह उन तीनोंमें सम्भवतया लघु था । किन्तु बौद्ध पिटक साहित्य में जहाँ कहीं भी बुद्ध विरोधी छे शास्ताओंका निर्देश किया गया है वहाँ मखलिगोशालका ही नाम आया है ।
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शायद कहा जाये कि नन्दवात्स्य और कृश सांकृत्याने आजीविक सम्प्रदायकी स्थापना की होगी और उसका उत्तराधिकारी मक्खलि गोशालक होगा । किन्तु यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि जैसा कि हम आगे देखेंगे आजीविक सम्प्रदाय मक्खलि गोशालक से प्राचीन नहीं है । उसीने उसकी स्थापना की थी । अतः नन्दवात्स्य और कृश सांकृत्यका अचेल परिव्राजक सम्प्र-दायसे सम्बन्ध तथा मक्खलि गोशालका उनका उत्तराधिकारो होना प्रमाणित नहीं होता । प्रत्युत बौद्ध उल्लेखों से ये तीनों साधी प्रतीत होते हैं। जैसा डा० हार्नलेने लिखा है । उन्होंने लिखा है'बौद्ध साहित्य में गोशालकके दो साथी बतलाये हैं- किस्स संकिच और नन्दवख । महावीर से अलग होनेके पश्चात् इन तीनोंने श्रावस्ती में एक सम्प्रदायके नाते नेताके रूपमें एकाकी जीवन बिताना आरम्भ किया । ( ई० इ० रि०, जि० १, पृ० २६७ )
इसके सिवा गोशालक के सम्बन्ध में बुद्ध घोषने दीघनिकाय की टीका में जो कुछ लिखा है वह ऊपर लिख आए हैं ।
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