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संघ भेद
४३१ डा० वरुआ' ने भी 'आजीविक' शीर्षक अपने विद्वत्तापूर्ण निबन्धमें इसी बातका समर्थन विस्तारसे किया है। और इसीके
आधार पर गोशालक तथा उनके आजीविक सम्प्रदायके सम्बन्धमें बहुत सा ताना बाना बुना गया है। अतः प्रथम उसपर प्रकाश डालना आवश्यक है।
केवल मज्झिमनिकायके महासचक सुत्तन्त (पृ० १४४) और और सन्दक सुत्तन्त (पृ० २६९ ) में उक्त तीनों नाम इस प्रकार आये हैं
सञ्चक निगंठपुत्त गौतम बुद्धके पास जाता है और वार्तालाप करता है। बुद्ध पूछते हैं --अग्निवेश तूने काय भावना सुनी है ? तो सञ्चक उत्तरमें कहता है_ 'जैसे कि यह नन्दवात्स्य, कृश सांकृत्य, मक्खली गोशाल (मानते हैं ) । भो गौतम ! यह अचेलक (= नग्न), मुक्त आचार साप्ताहिक भी आहार करते हैं। ऐसे इस प्रकार बीचमें अन्तर देकर अर्धमासिक आहारको ग्रहण करते हैं।' ___ सन्दक सुत्तन्तमें सन्दक परिव्राजक और भिक्षु आनन्दमें हुए वार्तालापका वर्णन है। आनन्दके उत्तरोंसे प्रसन्न होकर अन्तमें सन्दक कहता है-'यह आजीवक पूत तो अपनी बड़ाई करते हैं, तीनको ही मार्गदर्शक बतलाते हैं। जैसे कि, नन्दवात्स्य, कृश सांकृत्य और मक्खलि गोशाल। - इन दोनों ही बौद्ध उल्लेखोंमें सच्चक निम्रन्थपुत्र और सन्दक परिव्राजक दोनोंने ही नन्दवात्स्य आदि तीनोंको आजीविकोंका मुखिया बतलाया है। सन्दकतो परिव्राजक था यदि
२-ज० डि० ले०, जि० २, पृ० १-८० ।
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