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________________ संघ भेद ४०५ हुआ था और गौतम स्वयं जिससे मिलनेके लिये गये थे। दूसरे एक ऐसे ही बड़े संघका निर्देश भगवती' में है, जिसमें ५०० अनगार थे। इन्हें बहुश्रुत बतलाया है। इससे यह कहा जा सकता है कि सभी पापित्य अज्ञानी नहीं थे, ज्ञानी भी थे। और सम्भवतया इसीसे वे महावीरके पास नहीं गये। ___इनके न जानेका एक कारण यह भी हो सकता है कि महावीर इन पापित्यीय अनगारोंको पुनः दीक्षित करके ही अपने धर्ममें सम्मिलित करते थे। और इससे भगवान महावीरकी आचारके प्रति दृढ़ताका पता चलता है। __ पापित्यीयोंकी शिथिलाचारिता उनसे अज्ञात नहीं थी। "सान्तरोत्तर' वस्त्रका दुरुपयोग देखकर ही उन्होंने 'अचेल' धर्म प्रतिष्ठित किया था और इसीसे पार्वापत्यीयोंको भी नग्नताकी दीक्षा लेना पड़ती थी। ये बात सब पार्थापत्यीयोंको रुचिकर नहीं हो सकती थी। इससे अनेक पार्थापत्यीय साधु भगवान महावीर के पास प्रव्रजित नहीं हुए। किन्तु आगे जाकर उन्होंने भी भगवान महावीरका धर्म अंगीकार किया, या वे ऐसे ही बने रहे, इसके जाननेका कोई साधन नहीं है। सम्भव है महावीरके पश्चात् उक्त पार्थापत्यीय अनगार भी महावीरके अनगारोंमें सम्मिलित हो गये हों और श्रावस्तीके उद्यानमें हुए केशो-गौतम संवादने उसकी भूमिका तैयार कर दी हो।। आश्चर्य इभी पर है कि केशीने गौतमसे जो पार्श्वनाथ और और महावीरके धर्ममें अन्तरको लेकर प्रश्न किये, ये प्रश्न किसीने १ 'तेण कालेणं पासावञ्चिजा थेरा भगवंतो "बहुस्सुया बहु परिवारा पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं'।-भ० सू० १०७, २ श°, ५ उ० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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