________________
जै० सा० इ०-पूर्व पीटिका नहीं करते थे । ऋग्वेदमें ( १०-२२-८ ) में उन्हें अ-कमो-क्रिया काण्ड न करने वाला, 'अदेवयु देवताओंका अपक्षपाती, अब्राह्मण, अयज्वान'-यज्ञ न करनेवाला, अ-व्रत-व्रत रहित, अन्यत्रत - वैदिक-अतिरिक्त व्रतोंको धारण करनेवाला, देवपीयु'-देवताओं की निन्दा करनेवाला आदि कहा है। इन विशेषणोंसे स्पष्ट है, यहाँ दस्युसे आशय ऐसे मनुष्योंका है जो आर्योंके धर्मको नहीं मानते थे। दासोंके साथ तुलना करनेसे उनमें और दासोंमें थोड़ा ही अन्तर प्रतीत होता है। दस्युओंके कवीले नहीं होते थे। तथा इन्द्रकी दस्यु हत्याका तो प्रायः उल्लेख है किन्तु दास हत्याका नहीं है। ऋग्वेद (५-६-१०) में उन्हें अनास' कहा है । इस शब्दका आशय अनिश्चित-सा है। पदानुक्रमणी तथा सायण भाष्यमें इसका अर्थ अन-आस-विना मुखका किया है। किन्तु 'अ-नास' 'नाक रहित' अर्थ विशेष उपयुक्त प्रतीत होता है, क्योंकि आदिवासी द्रविड़ोंकी नाट चपटी होती थी।
दस्युअोंका दूसरा विशेषण 'मृधुवाचः' है जो अनासके साथ आता है। इसका अनुवाद अस्पष्ट वाणी या 'न समझने योग्य वाणी' किया गया है। अर्थात् उनकी बोली आर्य लोग नहीं समभते थे। एतरेय ब्राह्मणमें दस्युका अर्थ भ्रत्यः-असभ्य मनुष्य पाया जाता है।
दस्युकी तरह दास शब्दका भी प्रयोग ऋग्वेदकी कुछ ऋचाओंमें दैवी शत्रुके रूपमें किया है, किन्तु बहुत-सी ऋचाओंमें दास शब्द आर्योंके मानव शत्रुओंका सूचक है। दासोंके कवीले थे और पुर थे, जो लोहेके बने थे। उनका वर्ण कृष्ण था। दस्युअोंकी
१.ऋ० ८-७०-११ । ऋ० ४-१६-६ । ३.०८-७०-११ । ४. ऋ० ८-७०-११ । ५. अथर्व० १२-१-२७ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org