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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण १७ असुराः पणयो नाम रसापारनिवासिनः । गास्तेऽपजहुरिन्द्रस्य न्यगृहँश्च प्रयत्नतः ॥ रसाके पार रहनेवाले असुर पणि लोग इन्द्रकी गायें लेकर भाग गये और उन्हें बड़े यत्नसे अपने किलोंमें छिपा दिया। इन्द्रने अपनी दूती भेजी। शतयोजनविस्तारामतरत्तां रसां पुनः । यस्याः पारे परे तेषां पुरमासीत् सुदुर्जयम् ॥ 'दृती सौ योजन विस्तारवाली रसा नदीको तैरकर उस पार पहुंची, जहाँ उन पणियोंका दुर्जय किला था।' अभीतक यह निश्चित नहीं हो सका कि ये पणि कौन थे। संस्कृतके शब्द पणिक या वणिक , पण्य और विपणिसे ऐसा प्रतीत होता है कि पणि लोग ऋग्वैदिककालीन व्यापारी थे। ___ एक विदेशी विद्वान् ( Ludwig ) का मत है कि पणियोंसे लड़नेके उल्लेख स्पष्ट रूपसे बतलाते हैं, वे आदिवासी व्यापारी थे जो समूह बनाकर व्यापारके लिए विदेश जाते थे और आर्योंके आक्रमणसे बचनेके लिये लड़नेको उद्यत रहते थे। अपने इस मतके समर्थनमें वह पणियोंको दास और दस्यु बतलानेवाले उल्लेखोंको उपस्थित करता है । अस्तु जो कुछ हो, इतना स्पष्ट है कि पणि वैदिक आर्योंके देवोंको नहीं पूजते थे। (वै . इं० जि० १, ४७१-७२ । वै० ए०, पृ० २८- ६। कै० हिं, जि १, पृ०८६-८७ )। ऋग्वेदकी अनेक ऋचाओंमें दस्यु शब्द आया है कुछमें दैवी शत्रुओंके लिये प्रयुक्त हुआ है और कुछमें मानवीय शत्रुओंको, जो सम्भवतया इस देशके आदिवासी थे, दस्यु कहा है। आर्यों और दस्युओंके बीचमें जो बड़ा भेद था वह था उनका धर्म । दस्यु यज्ञ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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