________________
४०२
जै० सा० इ. पूर्व पीठिका ___ भगवती सूत्र आदि श्वेताम्बरीय आगमिक साहित्यसे ज्ञात होता है कि पार्श्वनाथके अनुयायी साधुओंने भगवान महावीर तथा उनके अनुयायी स्थविरोंके पास जाकर पुनः प्रव्रज्या ग्रहण की। यहाँ उदाहरणके लिये कालास नामक पार्खापत्यकी प्रव्रज्याका वर्णन दिया जाता है। .. - पार्थापत्यीय कालास वेसियपुत्त ( कालाश्य वैशिक पुत्र ) नामक अनगार (साधु ) जहाँ स्थविर थे वहाँ गया और बोलाश्री महावीर जिन के शिष्य सामायिक नहीं जानते, सामायिकका अर्थ नहीं जानते, संयम नहीं जानते, संयमका अर्थ नहीं जानते, संवरको नहीं जानते, संवरका अर्थ नहीं जानते, विवेक नहीं जानते, विवेकका अर्थ नहीं जानते, उत्सर्ग नहीं जानते, उत्सगका अर्थ नहीं जानते। ___ तब स्थविर कालास वेसियपुत्तसे इस प्रकार बोले-आर्य ! हम सामायिक जानते हैं। सामायिकका अर्थ जानते हैं, और सामायिकसे लेकर व्युत्सर्ग पर्यन्त सब जानते हैं। कालास वेसिकपुत्त पुनः बोला-यदि आर्य ! आप सामायिकको जानते हैं, और सामायिकसे व्युत्सर्ग तक सबका अर्थ जानते हैं तो बतलाइये इनका क्या अर्थ है ?
स्थविर बोले-आर्य ! आत्मा ही सामायिक है...."आत्मा ही व्युत्सर्ग है। . यह सुनकर कालासवेसिय पुत्तने पूछा-तो क्रोध मान माया लोभको त्याग कर उनकी गर्दा क्यों करते हैं ?
संयमके लिये। गर्दा संयम है या अगर्दा ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org