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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका लक धर्मका उपदेश दिया और पार्श्वनाथने 'संतरुत्तर' धर्मका उपदेश दिया। एक ही मोक्षकार्यके लिये दो प्रकारका लिंग बतलानेकी क्या आवश्यकता थी ?
गौतम उत्तर देते हैं-पार्श्वनाथ और महावीरने अपने अपने ज्ञानसे जानकर धर्मके साधन बतलाये हैं। तथा लोगोंके विश्वासके लिये, लोकयात्राके लिये और ज्ञानको प्राप्तिके लिये लिंगकी आवश्यकता होती है। निश्चयसे तो ज्ञान, दर्शन और चरित्र ही मोक्षके साधन हैं। ___ गौतमके द्वारा केशोके प्रश्नका जो समाधान कराया गया है वह बहुत चलता हुआ सा है। अतः उसके सम्बन्धमें कुछ कहनेसे पहले केशीके प्रश्न पर प्रकाश डालना उचित प्रतीत होता है। केशीने भगवान महावीरके धर्मको अचेल बतलाया, सो ठीक ही है, इसके सम्बन्धमें यहाँ कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है। केशीने पाश्वनाथके धर्मको 'संतरुत्तर' कहा है जिसका संस्कृत रूप 'सान्तरोत्तर' होता है। इस 'सान्तरोत्तर' शब्दकी व्याख्यामें भी टीकाकारोंने वही गड़बड़ी की है जो 'अचेल' शब्दकी व्याख्या में की गई है।
हमारे सामने उत्तराध्ययनकी दो टीकाएँ वर्तमान हैं और दोनों में 'सान्तरोत्तर' का अर्थ किया गया है.-'सान्तर' अर्थात् वर्धमान स्वामीके साधुओंकी अपेक्षा प्रमाण और वर्णमें विशिष्ट तथा
३-'सान्तराणि-वर्द्धमानस्वामियत्यपेक्षया मानवर्णविशेषतः सवि. शेषाणि, उत्तराणि-महामूल्यतया प्रधानानि प्रक्रमात् वस्त्राणि यस्मिन्नसौ -सान्तरोत्तरो धर्मः देशितः'। - उत्तरा०, टी० नेमिचन्द, पृ० २६६ ।
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