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________________ संघ भेद ३६५ तथा उनके पूर्वका समय और एक भगवान महावीरके पश्चात्का समय । . भ० महावीर तथा उनके पूर्व वस्त्रकी स्थिति कतिपय विद्वानोंका ऐसा मत है कि भगवान महावीर सुधारक थे-उन्होंने भगवान पार्श्वनाथकी परम्परामें अनेक सुधार किये-चतुर्यामके स्थानमें पञ्चमहाव्रतकी परिपाटी प्रवर्तित की। इसी तरह पाव नाथकी सचेल परम्पराके स्थानमें अचेल परम्पराको स्थापित किया। यह मत उत्तराध्ययनके केशी गौतम संवादके आधार पर ही स्थापित हुआ है। ____ पार्श्वनाथके चतुर्यामकी चर्चा में केशी गौतम संवादका एक अंश ही हमने उद्धृत किया था और दूसरा अंश जो सचेलता और अचेलतासे सम्बद्ध है, आगेके लिये छोड़ दिया था। वह अंश इस प्रकार है-केशी गौतमसे पूछता है-'महावीरने अचे१-हा० जै०, पृ० ४६ । से० बु० ई०, जि० ४५, प्रस्तावना पृष्ठ २२। २-अचेलश्रो अ जो धम्मो जो इमो संतरुत्तरो । देसिश्रो वद्धमाणेणं पासेण य महामुणी ॥ २६ ॥ एककजपवन्नाणं विसेसे किनु कारणं । लिंगे दुविहे मेहावी ! कहं विप्पच्चो न ते ॥३०॥ केसिं एवं वुवाणं तु गोयमो इणमव्ववी। विन्नाणेण समागम्म, धम्मसाहणमिच्छियं ।। ३१ ।। पच्चयत्थं तु लोगस्स नाणाविहविगप्पणं । जत्तत्थं गहणत्यं च लोगे लिंगपोयणं ॥ ३२॥ अह भवे पइन्ना उ मोक्खसम्भूयसाहणा। णाणं च दंसणं चेव चरितं चेव निच्छए ॥ ३३ ॥ --उत्तरा०, २३ अ०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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