________________
जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका प्रतिज्ञा की। शकटालने अपनी सफाई देकर चाणक्यके द्वारा योगानंद और उसके पुत्रको मरवा डाला ।' ___ हरिषेण कृत जैन वृहत्कथाकोशमें भी शकटालकी कथा है । जो इस प्रकार है_ 'पाटलीपुत्रमें नन्द नामका राजा था। उसके मंत्रीका नाम शकटाल था। उधर वररुचि, नमुचि, वृहस्पति और इंद्रदत्त पढ़नेके लिये गये , और वेदपारंगत होनेके पश्चात् गुरु दक्षिणाके लिये नन्दके पास गये। इसी समय नन्दका मरण हो गया। नमुचि नन्दके शरीरमें प्रवेश करके पाटलीपुत्रमें राज्य करने लगा और उसने वररुचि आदिके लिये एक हजार गौ प्रदान की। उन्होंने वे गायें किसीके द्वारा अपने उपाध्यायके लिये भिजवा दीं। और वररुचि वगैरह योगानंदकी सेवामें रहने लगे। ___ एक दिन शकटालने योगानंदको परीक्षाके लिये उसे मदिरा पिला दो । योगानंदने शकटालको उसके सौ पुत्रोंके साथ भयानक कारागारमें डाल दिया। पश्चात् घटनावश नन्दने शकटालको कारागारसे निकालकर पुनः मंत्री बना दिया। शकटाल मन ही मन रुष्ट होकर अवसरकी ताकमें रहने लगा। ____ एक दिन वररुचिने नन्दके कहनेपर कविता पाठ किया। शकटालने अवसरसे लाभ उठाकर नन्दसे कहा कि राजन् ! वररुचि दुष्ट बुद्धि है और आपके अन्तःपुरको नष्ट करना चाहता है । नन्द ने वररुचिको मार डालनेकी आज्ञा दे दी। राजाके किङ्करोंने वररुचिको तो छोड़ दिया और उसके बदले में किसी दूसरेके प्राण ले लिये। राजाका भ्रम दूर होनेपर वररुचि पुनः नन्दका सेवक हो गया। उधर शकटाल महापद्म नामक जैनाचार्यके निकट साधु हो गया। एक दिन शकटाल मुनि भिताके लिये राजमहलकी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org