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प्राचार्य काल गणना
३५७ बन जाती है। और पाँच श्रुतकेवलियोंके बतलाये गये १०० वर्ष कालमें ५० वर्षकी वृद्धि कोई अधिक नहीं है क्योंकि आगे पाँच एकादश अंगधारियोंका काल दो सौ बीस वर्ष बतलाया गया है, जो पाँच श्रुतकेवलियोंके कालसे दूनेसे भी अधिक है। यदि इन दोनों कालोंका समीकरण कर दिया जाये तो दोनोंका काल १६०१६० वर्ष हो जाता है। इस तरह यदि पाँच श्रुतकेवलियोंका काल एक सौ साठ वर्ष हो जाता है तो समस्या सुलझ जाती है
और ६० वर्षकी कमी स्पष्ट हो जाती है। किन्तु श्वेताम्बर परंपरा में भी भद्रबाहु श्रुतकेवलीका लगभग वही काल माना जाता है जो दिगम्बर परम्परामें माना जाता है। इसीसे आचार्य हेमचंद्रको भगवान महावोरके निर्वाणसे चंदुगुप्त मौर्यके राज्य तककी राज. काल गणनामें ६० वर्ष कम करना पड़े।
हेमचन्द्रने वीर निर्वाणसे एक सौ पचपन वर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्त राजाको होना लिखा है तथा वीर निर्वाणसे एक सौ सत्तर वर्ष बीतनेपर भद्रबाहुका स्वर्गगत होना लिखा है । अतः हमें श्वेताम्बरीय काल गणनाको भी देखना होगा। ___ श्वेताम्बर पट्टावलियोंके अनुसार वीर निर्वाणसे २१५ वर्ष पर्यन्तकी राज्यकाल गणना और आचार्य काल गणना इस प्रकार हैं
१-पालक' ६०+ नवनन्द १५५ = २१५ वर्ष ।
२ - गौतम १२+ सुधर्मा ८+ जम्बू ४४+ प्रभव ११+ शय्यंभव २३ + यशोभद्र ५० + संभूति विजय ८+ भद्रबाहु १४+ स्थूलभद्र ४५ = २१५ वर्ष ।
तत्पश्चात् मौर्य राज्यकाल १०८ वर्षमें-महागिरि ३०, सुहस्ति ४६, गुणसुन्दर ३२ ।
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