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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका देश तथा लोककी घटनाओंका उल्लेख है ? जब तक पुराने इतिहास तथा पुराणका ज्ञान न हो, तब तक वेदोंका समझना कठिन है।
जैसे वैदिकी हिंसाके प्रबल विरोधके कारण उपेक्षित हुए वेदोंकी पुनः प्रतिष्ठाके हेतु स्वामी दयानन्दने वैदिक भाष्य रचा, वैसे ही वेदविरोधी पन्थोंको दबानेके लिये यास्कने ईसासे कई सौ वर्ष पूर्व निरुक्त रचा था । यास्क मुनिके समयमें आचार्य-कोत्सका मत था कि वेदोंके मंत्र निरर्थक हैं (निरुक्त अ १, पाद ५)।
ऋग्वेदके मण्डल ५०, सूक्त १०६ के प्रारम्भिक ग्यारह मंत्र इसके उदाहरण हैं, इनमें एक मंत्र है, 'जर्भरी तुर्फरी' । सायण ने भी अपने ऋग्वेद भाष्यमें स्वीकार किया है कि इस मंत्रका अर्थ समझ नहीं पड़ता। अन्य भी कुछ मंत्र हैं जिनके सम्बन्धमें सायणने लिखा है कि इन मंत्रोंसे अर्थका कुछ भी बोध नहीं होता ( ऋग्वेद, भूमिका पृ०७) । और ठीक भी है, ईसासे कमसे कम दो हजार वर्ष पूर्व निबद्ध हुए वेदोंका यथार्थ अभिप्राय ईसासे १५०० वर्ष बाद रचे गये भाष्योंसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
वेदोंके सम्बन्धमें तीन पक्ष हैं-धार्मिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक। तीनोंको दृष्टिमें रखकर ही वेदका परिचय कराना उचित होगा।
ऋग्वेद वर्तमानमें उपलब्ध इस संहिता अर्थात् सग्रहमें दस मण्डल हैं। जिनमें कुल १०१७ सूक्त हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह
१. 'इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपबृहयेत् ।'
इतिहास और पुराणके द्वारा वेदार्थका विस्तार करना चाहिये ।
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