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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण ११ जिसमें काबुल नदी बहती है, आर्योंके देशमें गर्भित था । यह सप्तसिन्धव देश ही आर्योंका आदि देश था ( आ. आ. ३३ ) । किन्तु प्राच्य भाषाविद् डा सु चटर्जीका कहना है कि प्राचीन रूढ़िवादी हिन्दूमत कि आर्य भारत में स्वयंभूत हुए थे, विचारणीय ही नहीं है ( भा० आ हि ० पृ० २० ) । इन्हीं आयकी देन वेद है। ही वेद देवी देवताओं और राजा आदिके सम्बन्धमें जो भी कविताएँ तथा मंत्र बनाये गये थे, उनके संग्रहका नाम ही वेद है । ऐसा प्रतीत होता है कि वेद कहाँसे आए, किसने इनको बनाया और कैसे. इनका विकास हुआ, इसका ज्ञान प्रारम्भसे ही किसीको न था । यही कारण है कि वेदोंको अपौरुषेय माना जाता है । किन्तु पाश्चात्य विद्वानोंके मत से इनके निर्माणका काल ईसासे दो हजार वर्ष पूर्वके लगभग है । arat दो व्याख्याएँ मुख्यरूपसे मानी जाती हैं, एक attarai और दूसरी सायणकी । सायणकी व्याख्या ही पाश्चात्य भाषाओं में किये गये वेदोंके भाषान्तरोंकी आधारभूत है । एक तीसरी व्याख्या स्वामी दयानन्दने की है, जो आर्य समाजियोंको मान्य है । सायण और दयानन्दके व्याख्यानों में उतना ही अन्तर है जितना दक्षिण और उत्तर में । विद्वानोंका कहना है कि उक्त वैदिक भाष्यकर्ताओं के भाष्यों में सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि उन्होंने वेदोंके उद्गम स्थानका रहस्य जाने बिना ही उन पर भाष्य रचना कर डाली | सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि वेदोंके ऋषि कौन थे, वे कहाँ रहते थे, वेदोंमें किस 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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