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________________ ३२८ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका स्पष्ट रूपसे अवन्तिके नन्दिवर्धनको शैशुनाक कहा ही है । फलतः दोनों न केवल समकालीन हैं किन्तु एक हैं। मगध द्वारा अवन्तिकी विजय तो निश्चित है ही। इसीसे श्रीजायसवालजीने ( ज० वि०. उ० रि० सो० जि० १) यह परिणाम निकाला था कि मगधके राजाओंमें से नन्दिवर्धनने ही अवन्तिको जीता था। जैनग्रन्थोंके अनुसार अवन्तिमें पालकके वंशके बाद नन्दवंशने राज्य किया। नन्दिवर्धन नन्द कहलाता था। पुराणके एक पाठमें उसका नाम वर्तिवर्धन भी है । ( भा० इ० रू०, जि० १, पृ०५००)। किन्तु बादको पटनासे प्राप्त मूर्तियोंसे यह जाना गया कि पटनामें भी कोई राजा अज था। और तब यह स्पष्ट हुआ कि अज और उदपी एक ही हैं। तथा अवन्तिका अजक भी वही है और उसीने अवन्तिको जीता था। बात यह है कि पुराणोंके अनुसार प्रद्योतका उत्तराधिकारी पालक और उसका उत्तराधिकारी विशाखयूप है, विशाखयूपके बाद एक राजाका नाम अजक है। किसी-किसी प्रतिमें उसे विशाखयूप से पहले रख दिया है । कथा सरित्सागरके अनुसार पालकका भाई गोपालबालक था और मृच्छकटिकके अनुसार पालकको गद्दीसे उतारकर प्रजाने गोपालकको आर्यक नामसे राजा बनाया था । उधर श्रीमद्भागवतमें मगधवंशमें उदयके स्थान पर 'अजय' आता है। और नन्दीवर्धनको अाजेय लिखा है जिससे उदयीका नाम अज सिद्ध होता था । बादको उक्त मूर्तियोंसे यह ज्ञात होनेपर कि पटना में भी कोई राजा अज था, स्पष्ट हुआ कि अज और उदयी एक ही हैं तथा वही अवन्तिका अजक भी है । (ज० वि० उ० रि० सो० १६१६) । संभवतः अवन्तिको जीतकर भी वह अपने राज्यमें नहीं मिला सका। यह काम उसके उत्तराधिकारी नन्दवर्धनने किया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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