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________________ वीर निर्वाण सम्वत् ३२७ वह उसे बाँधकर प्रति दिन राजमार्गसे वैद्यके घर ले जाता और वह आदमी यह चिल्लाता हुआ जाता -मैं प्रद्योत हूँ । ये मुझे बाँधकर लिये जाते हैं । सब लोग यह जान गये कि इसके भाईका नाम प्रद्योत है और यह पागल है । एक दिन रात्रि में वेश्या सक्त प्रद्योत अभय के निवास स्थान पर पहुँचा और पकड़ लिया गया। दिन निकलनेपर उसे खाटमें बाँधकर राजमार्गसे लेकर सब लोग चल दिये । वह बहुत चिल्लाया- 'मैं प्रद्योत हूँ ये मुझे बाँधे लिये जाते हैं। मगर पुरवासी तो प्रति दिनकी इस चिल्लाहट से सुपरिचित थे । अतः वे चुप रहे और प्रद्योत बन्दी बनाकर राजगृह पहुँचा दिया गया । इस घटना से ( अभयकुमार के भाई ) मगधराज प्रद्योतकी भ्रान्ति चल पड़ी हो तो कोई आश्चर्य नहीं है। कथा सरित्सागर में जो पद्मावतीको मगधराज प्रद्योतकी पुत्री बतलाया वह भी उसी भ्रान्तिका फल हो सकता है। भासने पद्मावतीको मगधराज दर्शककी बहन बतलाया है। पुराणों के अनुसार दर्शक अजातशत्रुका पुत्र था । और अजातशत्रु अभय कुमारका भाई तथा मगधका राजा था। . अस्तु, जो कुछ हो, किन्तु मगधके सिंहासन पर प्रद्योतवंश राज्य होना इतिहास सिद्ध नहीं है । अतः इस प्रासंगिक चर्चाको यहीं समाप्त करके हम आगे बढ़ते हैं । पुराणोंके प्रद्योतांश विषयक सन्दर्भको मगधके वृत्तान्तसे अलग करके, कोष्टक या टिप्पणी के रूपमें पढ़नेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों राजवंश नन्दिवर्धन पर आकर समाप्त होते हैं । और दोनों वंशोंकी कालगणना करने पर अवन्तिका नन्दिर्धन और मगधका नन्दिवर्धन समकालीन प्रतीत होते हैं । अन्तमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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