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________________ वीर निर्वाण सम्वत् ३२५ लिये स्वयं उदयनको पसन्द करना आदि बातें, जो नाटकमें वर्णित हैं, घटित नहीं हो सकती और न वासवदत्ता ही पद्मावती को अपने ८० वर्षके वृद्ध पिता प्रद्योतकी भावी पत्नी कहनेकी धृष्टता कर सकती है। अतः डा० भण्डारकरका भासके विषय में जो मन्तव्य है कि उसने किसी गलत अनुश्रुतिके आधारपर महाराज दर्शककी बहिन पद्मावतीके साथ उदयनका बिवाह रचाया है, उचित प्रतीत होता है। दूसरे, कथा सरित्सागर में पद्मावतीको मगधराज प्रद्योतकी पुत्री बतलाया है। यह मगधराज प्रद्योत वही पौराणिक प्रद्योत जान पड़ता है, जिसके अस्तित्वमें विवाद है। तीसरे, जैन ग्रन्थों में अजातशत्रु (कुणिक ) के पद्मावती नामकी कोई कन्या नहीं बतलाई, प्रत्युतः उसकी रानीका नाम पद्मावती था। अतः भासके नाटकके आधारपर प्रद्योतको मगध राज दर्शकका समकालीन नहीं माना जा सकता। फिर भी पुराणोंमें जो उसका राज्य. काल २३ वर्ष बतलाया है, ऐतिहासिक घटनाओंको देखते हुए बहुत कम है। - हाँ यदि प्रद्योतको अजातशत्रुका समवयस्क माना जाये और जैन मान्यताके अनुसार महावीरके निर्वाणके समय (ई० पूर्व ५२७) उसकी मृत्यु मानी जाय तो उसका राज्यकाल २३ वर्ष होना संभव है। किन्तु उस अवस्थामें कुमारपाल प्रतिबोधमें दत्त चण्डप्रद्योतकी कथामें जो राजा श्रेणिक और तत्पुत्र अभय१- परिपन्थी च तत्रैकः प्रद्योतो मगधेश्वरः । पाणिग्राहः स हि सदा पश्चात्कोपं करोति नः ॥१६॥ तत्तस्य कन्यकारत्नमस्ति पद्मावतीति यत् । तदस्य वत्सराजस्य कृते याचामहे वयम् ॥२०॥ (३-१) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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