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________________ ३०२ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ____ जैन ग्रन्थों में महाबीरके समकालीन व्यक्ति के रूपमें बुद्धका संकेत तक भी नहीं मिलता। किन्तु बौद्ध त्रिपिटकोंमें निगंठ नाटपुत्त-निर्ग्रन्थ ज्ञातृ पुत्रका निर्देश तथा एक प्रबल प्रतिद्वन्दी के रूपमें विवरण बहुतायतसे मिलता है। जैसा कि हम पहले भी लिख आये हैं । अतः उससे यह स्पष्ट है, कि दोनों व्यक्ति समकालीन थे। ___ इसी तरह मगध राज बिम्बसार (श्रेणिक ) और उसका पुत्र अजातशत्रु ( कुणिक ) भी बुद्धके समकालीन थे। बुद्धचर्या (पृ०४१३) में लिखा है कि बुद्ध प्रवृजित होनेके पश्चात् राजगृहीमें आये । विम्वसारने उनसे वहाँ ठहरनेकी प्रार्थना को किन्तु बुद्धने कहा मैं सत्यकी खोजमें हूँ। तथा विम्बसारने उनसे प्रार्थना की कि बोधिलाभ होने पर राजगृही पधारना। तदनुसार जब बुद्धको बोधिलाभ हो गया तो वे राजगृही आये और विम्बसार उनका उपासक बन गया। अर्थात् जब बुद्धने घर छोड़ा तब राजगृहीके सिंहासन पर श्रेणिक आसीन था। बुद्धके जीवन काल में ही श्रेणिककी मृत्यु हुई और अजात शत्रुके राज्यके आठवें वर्षमें बुद्धका निर्वाण हुआ। अब हम प्रचलित वीर निर्वाण सम्बत्को सामने रखकर उक्त समकालीन व्यक्तियोंके उक्त घटना क्रमपर विचार करेंगे। पाठक जानते हैं कि सन् १६५६ की बैसाखी पूर्णिमाको विश्व भरमें महात्मा बुद्धकी २५०० वी निर्वाण जयन्ती मनाई गई थी। तदनुसार ( २५०-१६५६ = ५४४ ) बुद्धका निर्वाण ईस्वी पूर्व ५४४ में हुआ था। सिंहल आदि बौद्ध देशोंमें बुद्धके निर्वाण का यही काल माना जाता है। जैसे जैन परम्परामें महावीरका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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