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________________ वीर निर्वाण सम्वत् ३०१ वहीं उसकी मृत्यु हुई। श्रेणिककी मृत्युके पश्चात् कुणिकको बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वह चित्तकी शान्तिके लिये महाबीर और बुद्ध के पास गया । श्वेता० जैन सूत्रों में महाबीर भगवानके साथ श्रेणिकविषयक जितने प्रसंग आये हैं, उनसे अधिक प्रसंग कुणिक सम्बन्धी मिलते हैं। उनमे यह भी लिखा है कि श्रेणिककी मृत्युके पश्चात् कुणिक और उसके भाई हल्ल विल्लका आपस में झगड़ा हुआ । हल्ल विहल्ल अपने नाना चेटक के पास चले गये । कुणिकने चेटकपर आक्रमण कर दिया और वैशालीको बरबाद कर दिया । अब गोशालकको लीजिये । भगवती सूत्रके १५ वें शतक में उसका वर्णन विस्तारसे दिया है। उसके अनुसार जब गोशालकने क्रुद्ध होकर महाबीर भगवान पर अपनी तेजोलेश्या का प्रयोग किया और कहा कि तू छ मासमें मर जायेगा, तब महाबीरने उससे कहा- गोशाल; मैं अभी १६ वर्ष तक इस पृथ्वीपर बिहार करूंगा । और तू अपनी तेजो लेश्यासे स्वयं ही जलकर सातवें दिन मर जायेगा । अर्थात् गोशालककी मृत्युसे १६ वर्ष बाद तक भगवान महाबीर जीवित रहे । मरने से पूर्व गोशालक अपने शिष्यों को कुछ बातें बतलाई जिनमें मुख्य 'आठ चरिम' हैं । उन आठ चरिमों में एक 'महाशिला कंटक' युद्ध भी है। अजातशत्रुका चेटकके साथ जो युद्ध हुआ था उसे ही 'महाशिला कण्टक' युद्ध कहा है । अतः गोशालककी मृत्युसे पहले यह युद्ध हो चुका था ! यह तो हुआ जैनग्रन्थोंसे प्राप्त भगवान महाबीर के समकालीन इतिहासप्रसिद्ध व्यक्तियोंका विवरण । अब बौद्ध साहित्यको लीजिये । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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