________________
२९४
जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका हैं, निरसन करते हुए हेमचन्द्राचार्य के भूलभरे उल्लेखको उसका आधार बतलाया था। मुख्तार साहबने भी जाल साहबके उक्त मतको अमान्य ठहराया किन्तु उन्होंने हेमचन्द्राचार्यके कथनको भूल भरा न बतलाकर यह स्पष्ट किया कि जायसवाल साहबको ही उसे समझने में भूल हुई है। उसका स्पष्टीकरण नोचे दिया जाता है-- . मेरुतुंगकी विचार श्रेणी में जो काल गणना दी है वह हम पीछे दे आये हैं उसमें महावीर निर्वाणसे ६० वर्ष तक पालक, १५५. वर्ष नन्द, १०८ वर्ष मौर्य, ३० वर्ष पुष्पमित्र, ६० वर्ष वलमित्र, भानुमित्र, ४० वर्ष नभोवाहन, १३ वर्ष गर्दभिल्ल तथा ४ वर्ष तक शकोंका राज्य क्रमशः बतलाया है जिसका जोड़ ४७० वर्ष होता है। श्वेताम्बरोंमें यही काल गणना मानी जाती है।
परन्तु श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्र के 'परिशिष्ट पर्व' से ज्ञात होता है कि उज्जयिनीके राजा पालक का जो ६० वर्ष समय ऊपर बतलाया है उसी समय मगधके सिंहासन पर श्रेणिकका पुत्र कुणिक ( अजातशत्रु ) और कुणिकके पुत्र उदायीका राज्य क्रमशः रहा है । उदापीके निस्सन्तान मर जाने पर उसका राज्य नन्दको मिला । इसीसे परिशिष्ट पर्वमें श्री महावीर स्वामीके निर्वाणसे ६० वर्ष बाद नन्द राजाका होना लिखा' है। इसके पश्चात् मौर्यवंशके प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्तका राज्यारम्भ बतलाते हुए वह श्लोक' दिया है जिसे जार्ल चापेन्टियरने अपने निर्वाणका १-अदन्तरं वर्धमान स्वामि निर्वाण वासरात् ।
गतार्या षष्ठिवत्सर्यामेष नन्दोऽभवन्नृपः ।। ६-२४३ ।। २-एवं श्री महावीर मुक्तेवर्षशते गते ।
पंचपंचाशदधिके चन्द्रगुप्ताऽभवन्नृपः ।। ८-३३६ ।।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org