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________________ २६२ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका . १--मुख्तार साहबने अनेक ग्रन्थोंसे प्रमाण देकर यह प्रमाणित किया कि प्रचलित विक्रम सम्बत् विक्रमको मृत्युका सम्वत् है जो वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद प्रारम्भ होता है और इसलिए वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमके राजा होनेकी जो बात कही आती है और उसके आधार पर प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् पर जो आपत्ति की जाती है, वह ठीक नहीं है । २-इसके सिवाय, नन्दिसंघकी एक पट्टानलीमें तथा विक्रम प्रबन्धमें भी जो यह लिखा है कि 'जिन कालसे ( महावीरके निर्वाणसे ) विक्रम जन्म ४७० वर्षके अन्तरको लिये हुए है' और दूसरी पट्टावलीमें जो आचार्यों के समयकी गणना विक्रमके राज्यारोहण कालसे उक्त जन्ममें १८ वर्षकी वृद्धि करके दी गई है वह सब उक्त शक कालको और उसके आधार पर बने हुए विक्रमकालको ठाक न समझनेका परिणाम है। ऐसी हालतमें कुछ जैन, अजैन तथा पश्चिमीय और पूर्वीय विद्वानोंने पट्टावलियोंको लेकर जो प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् पर यह आपत्ति की है कि उसकी वर्ष संख्यामें १८ वर्षकी कमी है जिसे पूरा किया जाना चाहिए, वह समीचीन मालूम नहीं होती और इसलिये मान्य किये जानेके योग्य नहीं है। ___३-साथ ही श्वेताम्बर भाइयोंने जो वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका राज्याभिषेक माना है और जिसकी वजहसे ... १–'सत्तरि चदुसदजुत्तो जिणकाला विक्कमो हवह जम्मो ।' २-'विक्कमरज्जारंभा प (पु ) रो सिरिवीरनिवुई भणिया । सुन्नं मुणि-वेय जुत्तो विक्कमकालाउ जिणकाले ।' -वि० श्रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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