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वीर निर्वाण सम्वत्
२६१ महावीरके निर्वाणसे गर्दभिल्ल तक ४७० वर्षका अन्तर जैन गाथाओंमें कहा है, जिसे दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों मानते हैं। किन्तु जैनोंके सरस्वती गच्छकी पट्टावलीमें विक्रम सम्वत्
और विक्रम जन्ममें १८ वर्षका अन्तर माना है। यथा'वीरात् ४९२ विक्रम जन्मान्तर वर्ष २२ राज्यान्त वर्ष ४' । विक्रम विषयक गाथाकी भी यही ध्वनि है कि वह १७वें या १८वें वर्षमें सिंहासन पर बैठे । इससे सिद्ध है कि ४७० वर्ष जो वीर निर्वाणसे गर्दभिल्ल राजाके राज्यान्त तक माने जाते हैं वे विक्रमके जन्म तक हुए (४९२-०२ = ४७.)। अतः विक्रम जन्म ( म०नि० ४७० ) में १८ वर्ष और जोड़नेसे निर्वाणका वर्ष विक्रम सम्वत्से ५८८ वर्ष पूर्व निकलता है। १८ वर्षका फर्क गर्दभिल्ल और विक्रम सम्वत्के बीच गणना छोड़ देनेसे उत्पन्न हुआ मालूम होता है।
'यह याद रखनेकी बात है कि महावीर और बुद्ध दोनों समकालीन थे। बौद्धोंके सूत्रों में लिखा है कि जब बुद्ध शाक्य भूमिकी
ओर जाते थे तब उन्हें सूचना मिली कि पावामें महावीरका निर्वाण हो गया। बौद्ध लोग लंका, श्याम, वर्मा आदि स्थानोंमें बुद्ध निर्वाणके आज (वि० सं० १९७१) ४५८ वर्ष बीते मानते हैं।
सो प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत्में १८ वर्ष जोड़ देनेसे यह मिलान खा जाता है कि महावीर बुद्धके पहले निर्वाणको प्राप्त हुए। नहीं तो, बुद्ध निर्वाणसे महावीरका निर्वाण १६-१७ वर्ष पहले सिद्ध होगा, जो प्राचीन सूत्रोंके कथनके विरुद्ध पड़ेगा'। .
स्व० जायसवालके उक्त मतका निरसन पं० जुगलकिशोर जी मुख्तारने (अनेकान्त, वर्ष १, कि० १ में ) निस्तारसे किया।
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