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भगवान् महावीर
२८१ की स्थिति को देखकर थोड़ा सा फेरफार किया गया है। अचेलक
और सान्तरोत्तर धर्ममें भी वही दृष्टि परिलक्षित होती है । इसका विस्तृत विचार आगे संघभेदके प्रकरणमें किया जायगा; क्योकि संघभेदमें वस्त्र ही प्रधान कारण बना।
निर्वाण ७२ वर्षकी अवस्थामें बिहार प्रदेशके पटना जिलेके अन्तर्गत पावा नामक स्थानसे भगवान् महावीरने मुक्तिलाभ किया। उनके मुक्त होनेको अवस्थाके सम्बन्धमें दिगम्बर और श्वेताम्बर वर्णनोंमें अन्तर पाया जाता है।
श्वेताम्बरीय वर्णन के अनुसार भगवान् महाबीरका उपदेश सुनने के लिए विभिन्न देशोंके राजा पावामें पधारे। भ० महाबीर ने एकत्र जन समूहको छै दिन तक उपदेश दिया। सातवें दिन रात्रि के समय रात भर उपदेश दिया। जब रात्रि के पिछले पहर में सब श्रोता नींदमें थे, भ० महाबीर पर्यङ्कासनसे शुक्ल ध्यानमें स्थित हो गये। जैसे ही दिन निकलने का समय हुआ, महावीर प्रभुने निर्वाण लाभ किया। जब मनुष्य जागे तो उन्होंने देखा कि वीर प्रभु निर्वाण लाभ कर चुके हैं । उस समय गौतम गणधर के सिवाय उनके सभी शिष्य उपस्थित थे।
१-~वासाणूणत्तीसं पंच य मासे य वीस दिवसे य ।
चउविह अणगारेहि य बारह दिणेहि ( गणेहि ) विहरित्ता ।। पच्छा पावा णयरे कत्तिय मासस्स किण्हचौद्दसिए । सादीए रत्तीए सेसरयं छेतु हिव्वाश्रो ।
-ज० ध०, भा० १, पृ०८१ में उद्धृत ।
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