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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका ___भगवान महाबीरने अपना उपदेश अर्धमागधी भाषामें दिया था। उनके कालमें धर्मकी भाषा संस्कृत थी। किन्तु महाबीर और बुद्ध ने तत्कालीन लोक भाषाको ही अपने अपने उपदेशोंको माध्यम बनाया। जहां तक हम जान सके हैं ये दोनों ही प्रचारक किसी भाषाविशेष पर जोर नहीं देते थे। उनकी केवल यही भावना थी कि लोग धर्मको जाने और उसका अनु. सरण करें। भाषा विशेषके प्रयोगका महत्त्व उनकी दृष्टिमें नहीं था । चुल्लवग्ग (५-३३-१) में लिखा है कि एक बार दो भिनुओं ने बुद्धसे शिकायत की कि भिक्षु बुद्धबचनको अपनी अपनी भाषामें परिवर्तित कर रहे हैं। बुद्धने उत्तर दिया कि मैं भिक्षुओं को अपनी अपनी भाषाके प्रयोगकी अनुज्ञा देता हूं। यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता कि बुद्धने किस भाषामें धर्मका प्रचार किया। किन्तु सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ पालि भाषामें हैं और पालि निकायको त्रिपिटक कहते हैं। ____पालि भाषाका मूल कौन भाषा है और वह कहाँ उत्पन्न हुई इस विषयमें बड़ा विवाद है। किन्तु बौद्ध बुद्धकी भाषाको मागधी मानते हैं। डा० सुनीति कुमार चटर्जीका कहना है कि बुद्धके समस्त उपदेश बादके समयमें मागधी भाषासे मध्यदेशकी सौरसेनी प्राकृतमें अनुवादित हुए थे। और वे ही ईस्वी पूर्व प्रायः दो सौ वर्षसे पालि भाषाके नामसे प्रसिद्ध हुए।' किन्तु पालि भाषाका शौरसेनी और मागधीकी अपेक्षा पैशाचीके साथ ही अधिक सादृश्य है इसीसे डा० कोनो और सर ग्रियर्सनने पैशाची भाषा
१. 'भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ' -सम
सू० । 'देवा ण अद्ध मागहाए भासाए भासंति' -भग० सू०॥ 'भासारिया जे णं अद्ध मागहाए भासाए भासंति -प्रज्ञा०'
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