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________________ भगवान् महावीर २५१ आन्तरिक और बाह्य वृत्तिने उन्हें एक दिन 'जिन' बना दिया। वह दिन था वैसाख शुक्ला दसमी। उस दिन वह जृम्भिका' ग्रामके निकट बहनेवाली ऋजुकूला नदीके तट पर शालवृक्षके नीचे ध्यानस्थ थे। उसी दिन उन्हें केवल ज्ञानकी प्राप्ति हुई और वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी बन गये तथा 'जिन', अर्हत्', तीर्थङ्कर आदि नामोंसे अभिहित हुए। १--उजुकूलणदीतीरे जंभियगामे वहिं सिलाव? । छट्टैणादातो अवररहे पादछायाए ॥२०॥ वइसाह जोएहपक्खे दसमीए खवगसेढिमारुद्धो । हतूण घाइकम्मं केवलणाणं समावण्णो ।। २६ ।। -ज० ध०, भा० १, पृ० ८० में उद्धृत । बहसाह सुद्धदसमी माघारिक्खम्हि वीरणाहस्स । रिजुकूलणदीतीरे अवरणहे केवलं णाणं ॥ ७११ ।। --त्रि० प्र०, अ०४॥ जंभियवहि उजुवालियतीर वियावत्त सामसाल अहे । छठेणुक्कुडुयस्स उ उप्पणं केवलं गाणं ॥ ५२५ ।। -प्रा०नि०, पृ० २६१ । ग्राम-पुर-खेट कर्वट-मटम्ब-घोषाकरान् प्रविजहार । उग्रैस्तपोविधानादश वर्षाण्यमरपूज्यः ।। १० ।। ऋजुकूलायास्तीरे शालगुमसंश्रिते शिलापट्टे । अपराण्हे षष्ठ नास्थितस्य खलु जम्भिकाग्रामे ॥११॥ वैसाखसितदशम्यां हस्तोचरमध्यमाश्रिते चन्द्र । क्षपकश्रेण्यारूढस्योत्पन्न केवलज्ञानम् ।। १२ ।। -निर्वाण भक्ति । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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