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भगवान् महावीर
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प्रव्रज्या
तीस वर्षकी वयमें मगसिर बदी दसमीके दिन महावीरने समस्त परिग्रहको त्यागकर जिनदीक्षा ले ली। उन्होंने अपने शरीरके सब वस्त्र-आभरण उतारकर फेंक दिये, काले धुंघराले केशोंको जड़से उखाड़ डाला और इस तरह अन्तरंग तथा बहिरंग परिग्रहको त्यागकर वह सच्चे निन्थ बन गये ।
किन्तु श्वेताम्बरीय मान्यतामें इससे कुछ अन्तर है। आचारांग' चूणिमें महावीर भगवानकी प्रव्रज्या वर्णन करते हुए लिखा है-'इस विषयमें कुछ विशेष कथन करते हैं--
१--'मणुवत्तणसुहमतुलं देवकयं सेविऊणवासाइ। अट्ठावीसं सत्त य मासे दिवसे य वारसयं ।। २५ ॥
आभिणिबोहियबुद्धो छ?ण य मग्गसीस बहुलाए । दसमीए णिक्खंतो सुरमहिदो णिक्खमणपुजो ।। २६ ॥
-ज० ध०, भा० १, पृ० ७८। ति० प०, अध्याय ४, गा० ६६७ । हरि० पु० २-५१ । उत्त पु०, पर्व ७४, श्लो० ३०३-३०४ ।
'मगसिरबहुलस्स दसमी पक्खेण पाईणगामिणीए छायाए पोरसीए अभिनिविट्ठाए "। कल्प सू० ११३ ।
२-'इह तु किंचि विसेसं भएणति--सो भगवं णिगिणो भविता एगदूरां वा से खंधे काउं पव्वइतो, तस्स पुण भगवतो एतं श्रालंबणं..." सो भगवं बद्धमाणो पारं गच्छतीति पारगो सीतपरिसहाणं वत्थमंतरेणा वि । जं पुण तं वत्थं खंधे ठितं घटितं वा तं अणुधम्मियं तस्स...." अहवा तित्थगराणं अयं अणुकालधम्मो ।'--श्राव० चू०।
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