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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका पार्श्वनाथका जन्म हुआ था। अतः इन दोनों राज्योंमें राजनैतिकके साथ धार्मिक सम्बन्ध भी होना संम्भव प्रतीत होता है।
लिच्छवि गणतंत्रकी स्थापनाका समय वैदिक कालका निर्धारण करते हुए स्व० डा० रा. दा. बनर्जी ने अपनी 'प्रीहिस्टोरिक इण्डिया' नामक पुस्तक (पृ० ४४ ) में लिखा है
'पुराणोंके अनुसार कुरुवंशी राजा परीक्षित मगधके राजा महापद्मसे १०५० वर्ष पूर्व जन्मा था। वायु पुराणके अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहणसे ४० वर्ष पूर्व महापद्मने राज्य करना प्रारम्भ किया था। अतः यदि चन्द्रगुप्तका राज्याभिषेक ३२२ ई० में माना जाये तो परीक्षितका राज्याभिषेक ई० पूर्व १४२२ में मानना होगा। पुरुषोंकी साक्षीके अनुसार ईसाकी ५ वीं शतीके मध्यमें भारतमें यह माना जाता था कि परीक्षित ईस्वी पूर्व १५ वीं शतीके अन्तमें मौजूद था। ... वैदिक साहित्यमें कृष्ण, पाण्डव और कौरवोंका निर्देश नहीं है किन्तु परीक्षितका है । अतः परोक्षित कल्पित व्यक्ति नहीं है, वास्तविक हैं। इस परीक्षितको सर्पने डसा था। इसीसे उसके पुत्र जनमेजयने नाग यज्ञ किया था। _ डा० राय चौधुरीने ( पो० हि० ए० ई., पृ० ४३ ) लिखा है-कि विदेहराज जनक और जनमेजयमें पाँच या छ पीढ़ियोंका अन्तर था। अत: जनमेजयके १५० या १८० वर्ष पश्चात् और परीक्षितसे दो शती पश्चात् जनकका होना संभव है। अतः यदि पौराणिक परम्पराके अनुसार हम परीक्षितको ईस्वी पूर्व चौदहवीं
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