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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१८९ शत्रु विदेहराज जनककी ख्यातिसे चिढ़ता था। वृहदा० उप० (३-८-२) में गार्गी याज्ञवल्क्यसे दो प्रश्न करनेकी अनुज्ञा लेते हुए कहती है
'यथा काश्यो वा वैदेहो वोग्रपुत्र उज्ज्यं धनुरधिज्यं कृत्वा द्वौ बाणवन्तौ सपत्नातिव्याधिनौ हस्ते कृत्वोपोत्तिष्ठेदेवमेवाहं त्वा द्वाभ्यां प्रश्नाभ्यामुपोदस्थाम् ।'
'याज्ञवल्क्य ! जिस प्रकार काशी या विदेहका रहनेवाला कोई उग्रपुत्र प्रत्यश्चाहीन धनुषपर प्रत्यञ्चा चढ़ाकर शत्रुको अत्यन्त पीड़ा देनेवाले दो फलवाले बाण हाथमें लेकर खड़ा होता है उसी प्रकार मैं दो प्रश्न लेकर तुम्हारे सामने उपस्थित होती हूँ।'
जनकके उत्तराधिकारी लिच्छवि पाली टीका परमत्थ जोतिका (जि० १, पृ० १५८-६५ ) में लिखा है कि विदेहके जनक वंशका स्थान उन लिच्छवियोंने लिया, जिनका राज्य विदेहका सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य था, तथा जो वज्जिगणके सबसे प्रमुख भागीदार थे । ये लिच्छवि काशीकी एक रानीके वंशज थे।
इस उल्लेखसे यह प्रकट होता है कि सम्भवतया काशीके राजवंशकी एक शाखाने विदेहमें अपना राज्य स्थापित किया । ( पो. हि० ए० ई०, पृ. ७२ ) ___ इतिहासके जानकार इस बातसे सुपरिचित हैं, जैसा कि हम
आगे लिखेंगे, कि विदेहके लिच्छवि वंशको जैन धर्मके अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरको जन्म देनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था और काशीकी वाराणसी नगरीमें तेईसवें तीर्थङ्कर
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