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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
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परलोकके सिद्धान्त, योगसाधना, शिव देवी तथा विष्णुके' रूप में परमात्माको मानना, वैदिक हवन पद्धति के समक्ष नई पूजा रांतिका हिन्दुओं में आना आदि, तथा अन्य भी बहुतसी वस्तुका हिन्दूधर्म और विचार में आना, वास्तव में अनार्यो की देन है। बहुत सी पौराणिक तथा महाकाव्यों में आई हुई कथाएँ, उपाख्यान, और श्रद्ध' ऐतिहासिक विवरण भी आर्यों से पहलेके हैं । ( ० हि२, पृ० ३५-३६ ) ।'
जैन धर्म में प्रारम्भ से ही कर्म, परलोक सिद्धान्त तथा योग साधनाका प्राधान्य रहा है और ये ही उसकी विचारधारा के मूलाधार हैं ।
वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रो० श्री नीलकण्ठ शास्त्रीका एक लेख 'जैन धर्मका आदि देश' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। यहां हम उसका आरम्भिक अंश उधृत करनेका लोभ संवरण नहीं कर सकते। उन्होंने लिखा है
'जैन धर्म भी बौद्ध धर्मकी तरह वैदिक कालके आर्योंकी यज्ञ यागादिमय संस्कृतिकी प्रतिक्रिया मात्र था' कतिपय इतिहासकारों
१ - सिन्धुघाटी सभ्यता के प्रकाश में आने से पूर्व यह विवेचन करने की प्रथा सी थी कि इन्द्र, अग्नि, वरुण और मित्रके स्थान में ब्रह्मा, विष्णु और शिवको अपनाकर वैदिक धर्म ब्रह्मा धर्मके रूपमें क्रमसे विकसित होकर प्रकाश में आया । किन्तु प्रभावशाली खोजों के फलस्वरूप स्वीकृत वर्तमान मत यह है कि यह प्रवृत्ति एक मिश्रित संस्कृतिकी उपज है, तथा भारत में हुए धार्मिक परिवर्तन मुख्य रूपसे श्रार्यो और द्रविड़ों तथा उनकी विभिन्न संस्कृतियों के संयोगकी देन है; क्योंकि प्राचीन द्रविड़ बहुत ही सुसभ्य और सुसंस्कृत थे । ( प्रो० हि० इं०, भू० पृ० ६ ) ।
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