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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण कि यज्ञों और संन्यासके प्रभावसे उन ऋषियोंने देवताओं तक पर प्रभुत्व प्राप्त किया और जब वे अप्रसन्न हुए तो उनके शाप से राजाओंका तो कहना ही क्या, देवताओंका स्वामी इन्द्र भी कम्पित हो उठा । (हि इ० लि. (विन्टर० ) भा० १, पृ० ३१८-११६)
महाभारतमें विष्णुका इतना प्राधान्य है कि उसे देखकरके ऐसा लगता है कि यह विष्णु पूजाके उद्देशसे लिखी गयी कोई धार्मिक पुस्तक है। ऐसा प्रतीत होता है कि विष्णु और शिवकी पूजाको लक्ष्यमें रखकर प्राचीन ब्राह्मण कथाओंको परिवर्तन भी किया गया है । ये परिवर्तन ध्यान देने पर स्पष्ट रूपसे लक्ष्यमें
आ जाते हैं । यहाँ यह बतला देना उचित होगा कि महाभारतमें शिव सम्बन्धी कथाएँ भी हैं । अस्तु,
गीताके सम्बन्धमें भी विद्वानोंका प्रायः यही मत है कि महाभारतकी तरह गीता भी हमें अपने मूल रूपमें नहीं मिली, इसमें भी कालक्रमसे परिवर्तन और परिवर्द्धन हुए हैं । कुछ विद्वानोंका विचार है कि गीता मूलमें बहु देवतावादी ( Pantheistic ) थी पीछेसे विष्णुके अनुयायिओंने उसे एकेश्वरवादमें परिवर्तित कर अन्न चाहिये ? उसने कहा-मुझे अन्न न चाहिये, पर यह खाण्डव वन खानेको चाहिये । इन्द्र उसकी रक्षा करता है इससे मैं उसे खा नहीं सकता । मेरे सुलगते ही पानी बरसा देता है । कृष्णार्जुनने बड़ी तैयारी करके खाण्डव वनको जलाना प्रारम्भ किया। उस समय खाण्डव वनके प्राणियोंकी कैसी स्थिति हुई, इसका भयानक वर्णन २२८ वें अध्यायसे आया हैं । ऐसे संकट के समयमें वनकेप्राणी इन्द्रकी शरण में गये । इन्द्रने एकदम पानी बरसाया। अर्जुनने वर्षाको रोकनेके लिये बाणोंसे अाकाशको आच्छादित कर दिया ।
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