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________________ १२८ जै० सा० इ०.पूर्व पीठिका लक्ष्य है। भागवतमें कपिलको भी विष्णुका अवतार माना है। किन्तु चूंकि कपिलके पिता ऋषि थे, अतः उन्हें नाभिकी तरह यज्ञ करके ब्राह्मणोंके द्वारा विष्णुसे सिफारिश नहीं कराती पड़ी। उन्होंने अपनी पत्नीसे कह दिया कि तेरे गर्भसे भगवान अवतार लेंगे। बस, भगवानको अवतार लेना पड़ा। ब्राह्मणका वचन झठा कैसे हो सकता है ? ___ कपिल ऋषि और ऋषभदेवके मुखसे जो उपदेश कराया गया है उसमें भेद होना स्वाभाविक है, क्योंकि कपिल सांख्य शास्त्रके उपदेष्टा थे और ऋषभदेव परमहंस (जैन ) धर्मके फिर भी जहाँ तक भगवद्भक्तिकी बात है, दोनोंके द्वारा उसका समर्थन ही नहीं, प्ररूपण भी कराया गया है। किन्तु ऋषभदेवकी अपेक्षा कपिलके द्वारा भक्तिका प्ररूपण विशेष जोरदार है और ऐसा होना उचित ही है क्योंकि कपिलके सांख्य दर्शनको गीतामें स्थान प्राप्त है। परन्तु ब्राह्मणोंकी प्रशंसा ऋषभदेवके मुखसे भी खूब कराई गई है। लिखा है-'इस प्रकार ब्राह्मणोंको सर्वपूज्य जानकर उनका योग्य सम्मान तो करना ही, किन्तु स्थावर और जंगम-दोनों प्रकारके प्राणियोंको मेरे रहनेका स्थान जानकर किसीसे बैर न करना, किसीका जी न दुखाना, हर एक समय उनका आदर करना और शुभ चिन्तक रहना, यही मेरी सबसे बढ़कर पूजा है।' ___ इस वाक्यमें ब्राह्मण पूजाके साथ वासुदेव भक्ति और अहिंसा धर्मकी खिचड़ी पकाई गई है। जैनधर्ममें त्रस और स्थावर जीवोंकी मन, वचन कामसे रक्षा करनेका विधान है। अन्तमें ऋषभदेव जी कर्मोंसे निवृत्त महामुनियोंको भक्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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