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________________ प्राचीन स्थितिका अन्वेषण १२५ बारह बतलाई है और अ०६८ में दस अवतार ही बतलाये हैं। जिनमें छै तो पूर्वोक्त हैं उनमें चार नाम और जोड़े गये हैंदत्तात्रेय, एकका नाम न देकर केवल पांचवाँ लिखा है, वेदव्यास और कल्कि । वराह पुराणमें दस अवतार बतलाये हैं उक्त छै तथा मत्स्य, कर्म, बुद्ध और कल्कि। बादमें ये ही दस अवतार माने गये । अग्नि पुराणमें भी ये ही दस अवतार बतलाये हैं। ___ भागवत पुरमें तीन स्थलोंमें अवतारोंका निर्देश किया है-प्रथम स्कन्धके तीसरे अध्यायमें उनकी संख्या बाईस है, दूसरे स्कन्धके सातवें अध्यायमें उनकी संख्या २३ है और स्कन्ध ११ के चौथे अध्यायमें ५६ अवतार बतलाये हैं। बाईस अवतारोंका क्रम इस प्रकार गिनाया है-प्रथम सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार अवतार लेकर अखण्ड ब्रह्मचर्य पालन किया। दूसरी बार पृथ्वीका उद्धार करनेके लिये वाराह अवतार लिया। तीसरी बार नारद अवतार लिया। चौथी बार नरनारायण अवतार लिया। पाँचवीं बार कपिल अवतार लेकर आसुरिको सांख्य शास्त्रका उपदेश दिया। छठी बार दत्तात्रेय होकर आत्मविद्याका उपदेश दिया। सातवीं बार यज्ञ नामसे अवतार लिया। आठवीं बार नाभि राजाकी मरुदेवी नामक स्त्रीमें ऋषभ अवतार लिया और सब आश्रम जिसको नमस्कार करते हैं ऐसे परमहंस धर्मका उपदेश किया। नौवीं बार राजा पृथुके रूपसे अवतार लिया। दसवीं बार मत्स्यावतार लेकर पृथ्वीकी रक्षाकी । ११ वीं बार कच्छप अवतार लिया। १२ वां धन्वन्तरि अवतार लिया। तेरहवाँ मोहिनी रूप धारण करके देवतोंको अमृत पिलाया । १४ वां नृसिंह अवतार, १५ वा वामन अवतार, १६ वां परशुराम, १७ वां व्यास, १८ राम, १६ और बीसवां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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