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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण तो दूसरी ओर अनेक सन्दह उत्पन्न होते थे। किन्तु अन्तमें प्राचीनकालके भूले हुए आश्चर्यके द्वार खोल डाले गये।
- सिन्धु घाटी सभ्यता
१९२१ में स्व. डा० बनर्जी सिन्धप्रान्तके लरकाना जिले में सिन्धुके तट पर स्थित मोहेञ्जोदड़ोमें बौद्ध अवशेषोंकी खोजमें व्यस्त थे । वहाँसे कुछ उसी तरहकी सीलें प्राप्त हुईं जैसी हरप्पासे प्राप्त हुई थीं। इस खोजके महत्त्वको जानकर बौद्ध विहारसे पूरबकी ओर खुदाई की गई और वहाँसे ऐसे महत्त्वके अवशेष प्राप्त हुए जो बौद्ध अवशेषों से दो या तीन हजार वर्ष पूर्वके थे। इन खोजोंके फलस्वरूप यह स्थिर हुआ कि मोहेञ्जोदडो
और हरप्पामें आर्यपूर्व कालीन नगर विद्यमान थे और वहां से प्राप्त अवशेष एक ही आर्यपूर्वकालीन सभ्यतासे सम्बद्ध हैं। जिसका काल ईसासे चार हजार वर्ष पूर्व है । तथा भारतमें आर्योंका प्रवेश ईस्वी पूर्व दो हजार वर्ष तक नहीं हुआ। और उनको सभ्यताका सिन्धुघाटीमें फैली हुई सभ्यतासे कोई सम्बन्ध नहीं था, जो स्पष्ट रूपसे द्रविड़ोंकी अथवा आदिद्रविड़ोंकी सभ्यता थी, जिनके उत्तराधिकारी दक्षिण भारतमें निवास करते हैं। (प्रीहि • ई, भू० पृ. ८)।
सिन्धुघाटीके ये प्राचीन निवासी कृषक और व्यापारी थे। और उनकी उच्च सामाजिक व्यवस्था उनके द्वारा सुनियोजित और अच्छी रीतिसे निर्मित नगरोंसे लक्षित होती है। मोहेञ्जोदडोमें पास-पास चारों ओर मार्ग बने हुए थे- इमारतें पक्की ईटोंसे बनाई जाती थीं। मकानोंमें द्वार, खिड़कियां, पक्के फर्श और नालियाँ होती थीं। तथा स्नानागर, आदि अन्य सुविधाएं भी रहती थीं । अनेक प्रकारके बर्तन बनाये जाते थे। ताम्बा, टीन
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