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( १० ) सिन्धु घाटी में भी दो नग्न मूर्तियां मिली हैं। इनमें से एक कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित पुरुषमूर्ति है। दूसरी को भी अब तक पुरुष मूर्ति कहा जाता है। किन्तु ध्यान से देखने पर ज्ञात होता है कि वह नृत्य मुद्रा में स्त्री मूर्ति है । अभी पहली मूर्ति की पहचान किस प्रकार की जाये यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न बना ही रहता है । अथर्ववेद के एक मंत्र में महानग्न पुरुष और महानग्नी स्त्री के मिथुन का उल्लेख पाता है
महानग्नी महानग्नं धावन्तमनुधावति । इमा स्तदस्य गा रक्ष यभमामध्यौदनम् ।।
__ -अथव० २०११२६।११ किन्तु जैन और कुछ जैनेतर विद्वान भी पुरुष मूर्ति की नग्नता और कायोत्सर्ग मुद्रा के आधार पर इसे ऐसी प्रतिमा समझते हैं जिसका सम्बन्ध किसी तीर्थङ्कर से रहा है। सिन्धु लिपि के पढ़े बिना इस विषय में निश्चय से कुछ कहना कठिन है। किन्तु एक दूसरा प्रमाण जो सन्देह रहित है, सामने आ जाता है । वह पटना के लोहानीपुर मुहल्ले से प्राप्त एक नग्न कायोत्सर्ग मूर्ति है। उस पर मौर्य कालीन अोप या चमक है और श्री काशीप्रसाद जायसवाल से लेकर अाज तक के सभी विद्वानों ने उसे तीर्थङ्कर प्रतिमा ही माना है। उस दिशा में वह मूर्ति अब तक की उपलब्ध सभी बौद्ध तथा ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी मूर्तियों से प्राचीन ठहरती है। कलिंगाधिपति खारवेल के हाथीगुम्फ शिला लेख से भी ज्ञात होता है कि कुमारी पर्वत पर जिन प्रतिभा का पूजन होता था। इन संकेतों से इंगित होता है कि जैन धर्म की यह ऐतिहासिक परम्परा और अनुश्रुति अत्यन्त प्राचीन थी।
वस्तुतः इस देश में प्रवृत्ति और निवृत्ति की दो परम्पराएँ ऋग्वेद
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