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________________ भागवत में एक और भी अाश्चर्य जनक तथ्य लिखा है 'तेषां वै भरतो ज्येष्ठो नारायणपरायणः । विख्यातवर्षमेतद् यन्नाम्ना भारतमद्भुतम् ।। -भागवत ११।२।१७। इसके अनुसार भरत भी परम भागवत थे और नारायण भगवान् विष्णु के भक्त थे । अत एव एक ओर जहां जैनधर्म में उनका अत्यन्त सम्मानित पद था, वहीं दूसरी ओर भागवत जनता भी उन्हें अपना अाराधा मानती थी। इतना ही नहीं, ऋषभ और भरत इन दोनों का वंशसम्बन्ध उन्हीं स्वायंभुव मनु से कहा गया है जिनसे और भी ऋषियों का वंश और राजर्षियों की परम्परा प्रख्यात हुई। स्वायंभुव मनु के प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र नाभि, नाभि के ऋषभ, और ऋषभदेव के सौ पुत्र हुए जिनमें भरत ज्येष्ठ थे। यही नाभि अजनाभ भी कहलाते थे जो अत्यन्त प्रतापी थे और जिनके नाम पर यह देश अजनाभ वर्ष कहलाता था। प्रियव्रत ने अपने अग्नीध्र आदि सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का राज्य दिया था। उनमें अग्नीध्र को जम्बूद्वीप का राज्य मिला। अग्नीध्र की भार्या पूर्वचिति अप्सरा से नौ खण्डों में राज्य करने वाले नौ पुत्रों का जन्म हुअा। उनमें ज्येष्ठ पुत्र नाभि थे, जिन्हें अजनाभ खण्ड का राज्य प्राप्त हुआ | यही अजनाभ खण्ड पीछे भरतखण्ड कहलाया। नाभि के पौत्र भरत उनसे भी अधिक प्रतापवान चक्रवर्ती थे। यह अत्यन्त मूल्यवान् एतिहासिक परम्परा किसी प्रकार पुराणों में सुरक्षित रह गई है। वायु पुराण ३३१५१-५२, मार्कण्डेय पु० ५३।३६४०, में भी इसी प्रकार की अनुश्रति पाई जाती है । ये उद्धरण जेन अनुश्रुति की ऐतिहासिकता सूचित करते हैं । २२ वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ कृष्ण और बलराम के चचेरे भाई थे ऐसा जैन साहित्य में उल्लेख है। जैन कला में भी नेमिनाथ की मथुरा से प्राप्त मूर्तियों में कृष्ण और बलराम का अङ्कन दोनों ओर पाया जाता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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