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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड अवस्थाद्वयमें रहनेवाला वस्त्रका वस्त्रत्व ज्योंका त्यों बना रहावह नष्ट नहीं हुआ, इसीको ध्रौव्य कहते हैं । इसी तरह द्रव्य प्रत्येक समयमें उत्तर अवस्थासे उत्पन्न होता है और पूर्वअवस्थासे विनष्ट होता है और द्रव्यत्व-स्वभावसे ध्रवरूप रहता है। अतः ऊपरके कथनसे यह स्पष्ट है कि द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौयात्मक है । स्वामी समन्तभद्राचार्यके आप्तमीमांसागत निम्न पद्योंसे भी द्रव्य उत्पादादित्रयस्वरूप ही सिद्ध होता है : घट-मौलि-सुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिध्वयम्। शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्यं जनो याति स-हेतुकम् ॥५६॥ पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽत्ति दधिव्रतः । अगोरसवतो नोभे तस्मात्तत्त्वं त्रयात्मकम् ॥६चा अर्थात्-जो मनुष्य घट चाहता है वह उसके फूट जानेपर शोकको प्राप्त होता है, जो मुकुट चाहता है वह मुकुटरूप अभिलषित कार्यकी निष्पत्ति हो जानेसे हर्षित होता है। और जो मनुष्य केवल सुवर्ण ही चाहता है वह घटके विनाश और मुकुटकी उत्पत्तिके समय भी सोनेका सद्भाव बना रहनेसे माध्यस्थ्यभावको अपनाये रहता है। यदि सुवणे उत्पाद, विनाश और ध्रौव्य-स्वरूप न हो तो यह तीन प्रकारके शोकादिरूप भाव नहीं हो सकते । अतः इन शोकादिकको सहेतुक व्यय, उत्पाद और ध्रौव्यनिमित्तक ही मानना चाहिए। जिस व्रती-मनुष्यके केवल दूध पीनेका व्रत है वह दही नहीं खाता है, जिसके दही खानेका नियम है वह दूध नहीं पीता है। किन्तु जिसके अगोरसका व्रत है वह दूध और दही इन दोनोंको ही नहीं खाता है । इससे मालूम होता है कि पदार्थ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यस्वरूप है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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