SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला ___सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान सहित व्रत, गुप्ति, समिति आदिका अनुष्ठान करना, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप और वीर्यरूप पंच आचारोंका पालना तथा उत्तमक्षमादि दशधा धर्मका आचरण करना और षडावश्यकादि क्रियायोंमें यथायोग्य प्रवर्तना, यह सब व्यवहार सम्यकचारित्र है। अथवा अशुभक्रियाओंसे-विषय, कषाय,हिंसा झूठ,चोरी,कुशील और परिग्रहरूप क्रियाओंसे-निवृत्ति तथा शुभोपयोगजनक क्रियाओंमें-दान,पूजन,स्वाध्याय-तत्त्वचिंतन, ध्यान, समाधि और इच्छानिरोधादि उत्तम क्रियाओंमें-प्रवृत्ति करना व्यवहार सम्यकचारित्र है। इस चारित्रमें प्रायः स्थल राग परिणति बनी रहती है इसलिये इसे व्यवहार चारित्र कहा जाता है, और जिसमें भेदविज्ञानके द्वारा कषायोंका प्रकर्षस्वभाव शान्त कर दिया जाता है ऐसा वह जीवका परिणामविशेष निश्चय सरागसम्यक्चारित्र है। निश्चयवीतरागचारित्र और उसके भेदोंका स्वरूपस्वात्मज्ञाने निलीनो गुण इव गुणिनि त्यक्त-सर्व-प्रपश्चो रागः कश्चिन्न बुद्धो खलु कथमपि वाऽबुद्धिजः स्यात्तु तस्य । सूक्ष्मत्वा हि गौणं यतिवरवृषभाः स्याद्विधायेत्युशन्ति तच्चारित्रं विरागं यदि खलु विगलेत्सोऽपि साक्षाद्विरागम्॥१४॥ इति श्रीमदध्यात्मकमलमार्तण्डाभिधाने शास्त्रे मोक्ष-मोक्षमार्ग लक्षणप्रतिपादकः प्रथमः परिच्छेदः।। अर्थ-जो जीव गुणीमें गुणके समान स्वात्म-ज्ञान में लीन है-आत्म-स्वरूपमें ही सदा निष्ठ रहता है-सब प्रपचोंसे रहित * असुहादो विणिवित्ती सुहे पवित्ती य जाण चारितं । वद-समिदि-गुत्तिरूवं ववहारण्यादु जिण-भणियं ।।-द्रव्यसंग्रह ४५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy