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________________ ७२ करणानुयोग-प्रवेशिका ____उ०—जो कषाय चारित्रका घात तो नहीं करती किन्तु यथाख्यात चारित्रको उत्पन्न नहीं होने देती उसको संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ कहते हैं। ४६८. प्र०-नोकषाय किसको कहते हैं ? उ०-ईषत् कषायको नोकषाय कहते हैं। ४६९. प्र.-नोकषायोंका क्या स्वरूप है ? उ०—जिसके उदयसे पुरुषकी आकांक्षा उत्पन्न होती है उसको स्त्रीवेद कहते हैं। जिसके उदयसे स्त्रीके प्रति आकांक्षा उत्पन्न होती है उसको पुरुषवेद कहते हैं और जिसके उदयसे स्त्री और पुरुष दोनोंके प्रति आकांक्षा हो वह नपुंसकवेद है। जिसके उदयसे जीवमें हास्य निमित्तक राग उत्पन्न होता है उस कर्मस्कन्धको हास्य कहते हैं। जिसके उदयसे जीवमें राग भाव उत्पन्न होता है उसको रति कहते हैं जिसके उदयसे जीवमें किसीके प्रति अरुचि उत्पन्न होती है उसको अरति कहते हैं । जिसके उदयसे जीवके शोक उत्पन्न होता है उसको शोक कहते हैं। जिसके उदयसे जीवके भय उत्पन्न होता है, उसको भय कहते हैं। जिसके उदयसे ग्लानि उत्पन्न होती है उसको जुगुप्सा कहते हैं । ये सब नोकषाय हैं। ४७०. प्र०-आयु कर्मके कितने भेद हैं ? - उ०-चार भेद हैं-नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु और देवायु । जिसके उदयसे जीवको नारक भवमें ठहरना पड़े, उसे नरकायु कहते हैं। जिसके उदयसे जीवको तियंञ्च भवमें ठहरना पड़े, उसे तिर्यञ्चायु कहते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु और देवायुका स्वरूप जानना । ४७१. प्र०-नाम कर्मके कितने भेद हैं ? उ०-तिरानबे-चार गतिनाम ( नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव ), पाँच जाति नाम ( एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय ), पाँच शरीर नाम (औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण ), पाँच शरीर बन्धन नाम ( औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस, कार्मण), पाँच शरीर संघात नाम ( औदारिक, वैक्रियिक वगैरह ), छै शरीरसंस्थान नाम ( समचतुरस्र शरीर संस्थान, न्यग्रोध परिमण्डल शरीर संस्थान, स्वाति शरीर संस्थान, कुब्ज शरीर संस्थान, वामन शरीर संस्थान. हुण्डक शरीर संस्थान नाम ), तीन शरीर अंगोपांग नाम ( औदारिक शरीर अंगोपांग नाम, वैकियिक शरीर अंगोपांग नाम, आहारक शरीर अंगोपांग नाम ), छै शरीर संहनन नाम ( वज्रऋषभ नाराच शरीर संहनन, वज्र नाराच शरीर संहनन, नाराच शरीर संहनन, अर्धनाराच शरीर संहनन, कोलक शरीर संहनन और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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