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करणानुयोग-प्रवेशिका उ०-नाना जोवोंको अपेक्षा और एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल भो और उत्कृष्टकाल भी सामान्यसे अन्तर्मुहूर्त है।
४२२. प्र०-सयोगकेवली कितने काल तक होते हैं ?
उ.-नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा होते हैं, कभी भी इनका अभाव नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल अन्तर्महर्त है क्योंकि कोई क्षोणकषाय सयोगकेवली ही अन्तर्मुहूर्तकाल तक रहकर अयोगकेवलो हो गया। उत्कृष्ट काल आठ वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटी प्रमाण है, क्योंकि पूर्वकोटोकी आयुवाला कोई मनुष्य आठ वर्षका होनेपर संयमी हुआ और फिर क्रमसे सयोगकेवलो हुआ। वहाँ आठ वर्ष कुछ अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटो कालतक रहकर अयोगकेवली हो गया।
४२३. प्र०-मिथ्यादृष्टिका अन्तरकाल कितना है ? . उ०-नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है क्योंकि मिथ्यादृष्टि जीवोंका कभी भी अभाव नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक सौ बत्तीस सागर है क्योंकि कोई मिथ्यादृष्टी जोव एक अन्तर्मुहुर्त के लिये सम्यग्दृष्टि होकर पुनः मिथ्यादृष्टी हो जाता है तथा कोई मिश्यादृष्टि जीव कुछ कम छियासठ सागर कालतक सम्यग्दृष्टि रहकर अन्तिम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होकर पुनः छियासठ सागरके लिये सम्यग्दृष्टि हो जाता है और अन्तर्महुर्त कम दो छियासठ सागरके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होता है। इस तरह एक जोवकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक सौ बत्तीस सागर होता है। .. ४२४. प्र०-सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थानका अन्तर काल कितना है ?
उ०-नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भाग हैं। क्योंकि कमसे कम एक समय और अधिकसे अधिक पल्यके असंख्यातवें भाग कालतक सासादन सम्यक्त्वमें कोई भी जोव नहीं पाया जाता। एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग हैं; क्योंकि उपशम सम्यक्त्वसे गिरने पर ही सासादन सम्यक्त्व होता है और एक बार उपशम सम्यक्त्वमेंसे मिथ्यात्व आजानेपर
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