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________________ ५० करणानुयोग-प्रवेशिका ३४३. प्र.-अवधिदर्शन किसको कहते हैं ? उ०-अवधिज्ञानसे पहले होनेवाले सामान्य ग्रहणको अवधिदर्शन कहते हैं। ३४४. प्र.-केवलदर्शन किसको कहते हैं ? उ.-केवलज्ञानके साथ होनेवाले सामान्य ग्रहणको केवलदर्शन कहते हैं। ३४५. प्र०-कौन सा दर्शन किन गुणस्थानों में होता है ? ..उ०-चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन बारहवें गुणस्थान तक होते हैं। अवधिदर्शन चौथेसे बारहवें गुणस्थान तक होता है और केवलदर्शन तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानमें और सिद्धोंमें होता है । ३४६. प्र०-लेश्या किसको कहते हैं ? उ०-कषायसे अनुरंजित काययोग, वचनयोग और मनोयोगकी प्रवृत्तिको लेश्या कहते हैं। ३४७. प्र०-लेश्याके कितने भेद हैं ? उ.-कषायका उदय छै प्रकारका होता है-तीव्रतम, तीव्रतर, तोत्र, मन्द, मन्दतर, मन्दतम-कषायके उदयके इन छै प्रकारोंके क्रमानुसार लेश्याके भी छै भेद होते हैं-कृष्णलेश्या, नीललेश्या कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पालेश्या और शुक्ललेश्या। ३४८. प्र०-कौन लेश्या किन गुणस्थनों में होती है ? उ०—कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या, चौथे गुणस्थान तक, तेजोलेश्या और पद्मलेश्या सातवें गणस्थान तक और शुक्ललेश्या तेरहवें गुणस्थान तक होती है। ३४९. प्र०-भव्य मार्गणाके कितने भेव हैं ? उ०-दो हैं-भव्य और अभव्य। ३५०. प्र०-भव्य-अमव्य किसको कहते हैं ? उ० - जो जीव आगे मुक्ति प्राप्त करेंगे उन्हें भव्य कहते हैं और मुक्तिगमनकी योग्यता न रखनेवाले जीवोंको अभव्य कहते हैं। ३५१. प्र.-भव्य-अभव्यके कितने गुणस्थान होते हैं ? उ०-भव्य जीवोंके चौदह गुणस्थान होते हैं और अभव्योंके केवल एक पहला गुणस्थान ही होता है। ३५२ प्र०-सम्यक्त्व किसको कहते हैं ? ३४८, इस सम्बन्धमें विशेष जाननेके लिए देखो-खण्डागम, १ पु०, पृ० ३६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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