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________________ करणानुयोग- प्रवेशिका २९७. प्र० - श्रुतज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- मतिज्ञानसे जाने हुए पदार्थका अवलम्बन लेकर उसो पदार्थ से सम्बद्ध अन्य पदार्थके ज्ञानको श्रुतज्ञान कहते हैं । પૂ २९८. प्र० - श्रुतज्ञानके भेद कितने हैं ? उ०- श्रुतज्ञानके दो भेद हैं- एक अक्षरात्मक और दूसरा अनक्षरात्मक । २९९. प्र० - अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- जो श्रुतज्ञान अक्षर के निमित्तसे उत्पन्न नहीं होता किन्तु लिंग (चिह्न) के निमित्तिसे उत्पन्न होना है, उसे अनक्षरात्मक अथवा लिंगज श्रुतज्ञान कहते हैं । जैसे - शीतलवायुका स्पर्श होनेपर शीतलवायु जानना तो मतिज्ञान है और उसके पश्चात् ही वातप्रकृतिवालेको यह शीतलवायु हानिकारक है, ऐसा जानना अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान है । ३०० प्र०— अक्षरात्मक श्रुतज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- अक्षररूप शब्दके निमित्तसे उत्पन्न होनेवाले श्रुतज्ञानको अक्षरात्मक श्रुतज्ञान कहते हैं । जैसे—जीव हैं ऐसा करने पर श्रोत्रेन्द्रियके द्वारा जो शब्दका ज्ञान हुआ वह तो मतिज्ञान है और उस ज्ञानके पश्चात् जीव नामक पदार्थ है, ऐसा जो ज्ञान हुआ वह अक्षरात्मक श्रुतज्ञान है । ३०१. प्र० - अक्षरात्मक श्रुतज्ञानके कितने भेद हैं ? उ०- दो भेद हैं-- एक अंगप्रविष्ट और दूसरा अंगबाह्य । ३०२. प्र० - अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- भगवान् तीर्थङ्करने केवलज्ञान के द्वारा सब पदार्थोंको जानकर दिव्यध्वनिके द्वारा उपदेश दिया। उनके साक्षात् शिष्य गणधर ने उस उपदेशको अपनो स्मृतिमें रखकर बाहर अंगोंमें संकलित किया । यह अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान है । ३०३. प्र० - अंगबाह्य श्रुतज्ञान किसको कहते हैं ? उ०- आचार्योंने अल्पबुद्धि शिष्योंपर दया करके उन अंग-ग्रन्थोंके आधारपर जो ग्रन्थ रचे वे अंगबाह्य कहलाते हैं । ३०४. प्र० - अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञानके भेद कितने हैं ? उ०- बारह हैं - आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृधर्मकथा, उपासकाध्ययन, अन्तःकृद्दश, अनुत्तरोपपादिकदश, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद । ३०४. अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञानके बारह भेदोंमें किन-किन विषयोंका वर्णन है यह जानने के लिए देखो - जयधवला, १ भाग, पृ० १२२-१३२ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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