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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका उसको आहारक मिश्र कहते हैं और उसके द्वारा जो योग होता है उसे आहारक मिश्र काययोग कहते हैं। २५९. प्र०-कार्मण काययोग किसको कहते हैं ? । उ०-ज्ञानावरण आदि आठ प्रकारके कर्मस्कन्धको हो कार्मण शरीर कहते हैं और उसके द्वारा होनेवाले योगको कार्मण काययोग कहते हैं। २६०. प्र०-औदारिक और औदारिक मिश्र काययोग किसके होते हैं ? उ०-तिर्यञ्च और मनुष्योंके होते हैं। २६१. प्र०-वैक्रियिक और वैक्रियिक मिश्र काययोग किसके होते हैं ? उ०-देवों और नारकियोंके होते हैं। २६२. प्र०-तिर्यञ्च और मनुष्योंके भी वैक्रियिक शरीर सुना जाता है सो कैसे? उ०-औदारिक शरीर दो प्रकारका होता है-विक्रियात्मक और अविक्रियात्मक । उनमेंसे जो विक्रियात्मक औदारिक शरीर है वही मनुष्यों और तिर्यञ्चोंके वैक्रियिक रूपसे कहा जाता है । उसका यहाँ पर ग्रहण नहीं है। २६३. प्र०-आहारक और आहारक मिश्र काययोग किसके होते हैं ? उ०-ऋद्धिधारी छठे गुणस्थानवर्ती मुनियोंके होते हैं। २६४. प्र०-कार्मण काययोग किसके होता है ? । उ.--विग्रह गतिमें स्थित चारों गतियोंके जीवोंके तथा प्रतर और लोकपूरण समुद्घातको प्राप्त केवलीके कार्मण काययोग होता है । २६५. प्र०-विग्रह गति किसे कहते हैं ? उ.--विग्रह शरीरको कहते हैं। नया शरीर धारण करनेके लिये जो गति होती है उसे विग्रह गति कहते हैं । अथवा 'विग्रह' अर्थात् नोकर्म पुद्गलों का ग्रहण करनेके निरोधके साथ जो गति होती है उसे विग्रह गति कहते हैं । अथवा 'विग्रह' अर्थात् मोड़को लिए हुए जो गति होती है उसे विग्रह गति कहते हैं। २६६.प्र.-विग्रह गतिके कितने भेद हैं ? उ०--चार हैं - इषुगति या ऋजुगति, पाणिमुक्तागति, लांगलिकागति और गोमूत्रिका गति। २६७. प्र०-इषुगति किसको कहते हैं ? उ०--धनुषसे छूटे हुए बाणके समान मोड़ा रहित गतिको इषुगति कहते हैं। इस गतिमें एक समय लगता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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