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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका २५०. प्र.-मनोयोग किन गुणस्थानों में होता है। उ०-असत्य मनोयोग और उभय मनोयोग बारहवें गुणस्थान तक होते हैं और सत्य मनोयोग तथा अनुभय मनोयोग सयोगकेवलो नामक तेरहवें गुणस्थान तक होते हैं। २५१. प्र०-केवलीके मनोयोग कैसे सम्भव है ? उ०-इन्द्रियज्ञानसे रहित होनेके कारण सयोगकेवलोके मुख्य रूपसे तो मनोयोग नहीं है किन्तु अंगोपांग नामकर्मका उदय होनेसे हृदयमें स्थित द्रव्यमनके लिये मनोवर्गणाके स्कन्ध बराबर आते रहते हैं। अतः मनोयोग उपचार मात्रसे है। २५२. प्र०-वचनयोग किन गुणस्थानोंमें होता है ? उ०-असत्य वचनयोग और उभय वचनयोग बारहवें गुणस्थान तक होते हैं और सत्य वचनयोग तथा अनुभय वचनयोग तेरहवें गुणस्थान तक होते हैं। २५३. प्र०-औदारिक काययोग किसे कहते हैं ? उ०-मनुष्य और तिर्यञ्चोंके स्थूल शरीरको औदारिक कहते हैं और उसके निमित्तसे होनेवाले योगको औदारिक काययोग कहते हैं। २५४. प्र०-औदारिक मिश्रकाययोग किसको कहते हैं ? उ०-औदारिक शरीर जब तक पूर्ण नहीं होता, तब तक मिश्र कहलाता है। उसके द्वारा होनेवाले योगको औदारिक मिश्रकाययोग कहते हैं। २५५. प्र०-वैक्रियिक काययोग किसको कहते हैं ? । . उ०–अनेक गुण और ऋद्धियोंसे युक्त शरीरको वैक्रियिक शरीर कहते हैं और उसके द्वारा होनेवाले योगको वैक्रियिक योग कहते हैं। २५६. प्र०-वैक्रियिक मिश्रकाययोग किसको कहते हैं ? उ०-वैक्रियिक शरीर जब तक पूर्ण नहीं होता, तब तक मिश्र कहलाता है और उसके द्वारा जो योग होता है उसे वैक्रियिक मिश्रकाययोग कहत हैं। २५७. प्र०- आहारक काययोग किसको कहते हैं ? उ०-छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि अपनेको सन्देह होनेपर जिस शरीरके द्वारा केवलीके पास जाकर सूक्ष्म अर्थोंको ग्रहण करता है उसे आहारक शरीर कहते हैं और उसके द्वारा होनेवाले योगको आहारक काययोग कहते हैं। २५८. प्र०-आहारक मिश्र काययोग किसको कहते हैं ? उ०-जब तक आहारक शरीर पूर्ण नहीं होता, अर्थात् आहार वर्गणारूप पुद्गल स्कन्धोंको आहारक शरीर रूप परिणमाने में समर्थ नहीं होता, तब तक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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