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करणानुयोग-प्रवेशिका उसे देखा नहीं जा सकता, उसे संवृत कहते हैं । जिसको देखा जा सकता है उसे विवृत कहते हैं और जो दोनों रूप हों उसे संवृतविवृत कहते हैं।
१७७. प्र०-किस जन्मवालोंकी कौन योनि होती है ?
उ०-उपपाद जन्मवालोंको अचित्त, शीत या उष्ण और संवृत योनि होती है। गर्भ जन्मवालोंको सचित्ताचित्त, शीत-उष्ण या शीतोष्ण और संवृत योनि होती है। सम्मूर्छन जन्मवालोंको सचित्त, अचित्त या सचित्ताचित्त, शीत उष्ण या शीतोष्ण और संवृत अथवा विवृत योनि होती है। इतना विशेष है कि तेजस्कायिक जीवोंकी योनि उष्ण ही होती है तथा एकेन्द्रियोंको योनि संवृत और विकलेन्द्रियोंकी विवृत होतो है।
१७८. प्र०–योनि और जन्ममें क्या भेद है ?
उ०-योनि आधार है, जन्म आधेय है; क्योंकि सचित्त आदि योनियोंमें जीव सम्मूर्छन आदि जन्म लेकर उत्पन्न होता है।
१७९. प्र०-विस्तारसे योनिक भेद कितने हैं ?
उ०-विस्तारसे योनिके भेद चौरासी लाख हैं-नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक इन छहोंमेंसे प्रत्येकको सात-सात लाख योनियाँ हैं। प्रत्येक वनस्पतिकी दस लाख योनियाँ हैं। दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय और चौइन्द्रियमेंसे प्रत्येकको दो दो लाख योनियाँ हैं। देव नारकी और पञ्चेन्द्रिय तियंञ्चोंमेंसे प्रत्येकको चार-चार लाख योनियां हैं और मनुष्योंकी चौदह लाख योनियाँ हैं।
१८०. प्र०-जन्मके कितने भेद हैं ? उ०–तीन-सम्मूर्छन जन्म, गर्भ जन्म और उपपाद जन्म । १८१.३०-सम्मर्छन जन्म किसे कहते हैं ?
उ.-तीनों लोकोंमें सर्वत्र माता पिताके सम्बन्धके बिना सब ओरसे पुद्गलोंको ग्रहण करके जो शरीरको रचना हो जाती है उसे सम्मूर्छन जन्म कहते हैं।
१८२. प्र०-गर्भजन्म किसे कहते हैं ? .
उ०-स्त्रीके उदरमें माता पिताके रज वोर्यके मिलनेसे जो शरीरकी रचना होती है, उसे गर्भ जन्म कहते हैं।
१८३. प्र०-उपपाद जन्म किसे कहते हैं ?
उ०–जहाँ पहुंचते ही एक अन्तर्मुहूर्तमें पूर्ण शरीर बन जाता है ऐसे देव नारकियोंके जन्मको उपपाद जन्म कहते हैं। ... १८४. प्र०-किन जीवोंके कौन सा जन्म होता है ?
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