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करणानुयोग-प्रवेशिका दोइन्द्रिय, तइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और असंज्ञीपञ्चेन्द्रिय जीवोंके मनके बिना शेष पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं और संज्ञो पञ्चेन्द्रिय के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं।
१६७. प्र.-पर्याप्तकके कितने गुणस्थान हो सकते हैं ? उ.--पर्याप्तकके सभी गुणस्थान हो सकते हैं। १६८. प्र०-निवृत्त्यपर्याप्तकके कितने गुणस्थान होते हैं ? उ०-पहला, दूसरा, चौथा और छठा में चार गुणस्थान होते हैं। १६९. प्र०-लब्ध्यपर्याप्तकके कितने गुणस्थान होते हैं ? उ.-लब्धपर्याप्तकके केवल पहला गुणस्थान होता है । १७०. प्र.-लब्ध्यपर्याप्तक जीव एक अन्तर्महूर्तमें कितने जन्म धारण
करता है? उ०-छियासठ हजार तीन सौ छत्तीस । १७१. प्र०-योनि किसे कहते हैं ? उ०-जीवके उत्पत्ति स्थानको योनि कहते हैं। १७२. प्र०-योनिके कितने भेद हैं ? उ०-दो, आकार योनि और गुण योनि। १७३. प्र०--आकाररूप योनिके कितने भेद हैं ?
उ०-स्त्रीके शरीरमें होनेवाली आकार रूप योनिके तीन भेद हैंशंखावर्त योनि, कूर्मोन्नत योनि और वंशपत्र योनि ।
१७४ प्र०-किस योनिमें कौन उत्पन्न होता है ?
उ.-शंखावर्तक योनिमें तो गर्भ नहीं रहता। कूर्मोन्नत योनिमें तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, नारायण आदि उत्पन्न होते हैं और वंशपत्र योनिमें जनसाधारण उत्पन्न होते हैं।
१७५. प्र०-गुण योनिके कितने भेद हैं ?
उ०-नौ सचित्त, अचित्त, सचित्ताचित्त, शोत, उष्ण, शीतोष्ण, संवृत, विवृत, संवृतविवृत।
१७६. प्र०-सचित्त आदिका क्या स्वरूप है ?
उ०-चेतन सहित पुद्गल स्कन्धको सचित्त कहते हैं। उससे विपरीतको अचित्त कहते हैं। जो पुद्गल स्कन्ध सचित्त अचित्त दोनों रूप होते हैं उन्हें सचित्ताचित्त कहते हैं। शीत स्पर्शसे युक्त पुद्गल स्कन्धको शीत कहते हैं । उष्ण स्पर्शसे युक्त पुद्गल स्कन्धको उष्ण कहते हैं । जो पुद्गल उभय रूप हों उन्हें शीतोष्ण कहते हैं । जिस पुद्गल स्कन्धका आकार गुप्त होता है, जिससे
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