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करणानुयोग- प्रवेशिका
१२२. प्र० - उपशमश्रेणिके गुणस्थान कौन-कौन हैं ?
उ०- आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ ये चार गुणस्थान उपशम
श्रेणिके हैं ।
१२३. प्र० - क्षपकश्रेणि किसे कहते हैं ?
उ०- जिसमें चारित्र मोहनीयको २१ प्रकृतियोंका क्षय किया जाता है, उसे क्षपकश्रेणि कहते हैं ।
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१२४. प्र० - क्षपकश्रेणिके गुणस्थान कौनसे हैं ?
उ०- आठवां, नौवां, दसवां और बारहवां, ये चार गुणस्थान क्षपक श्रेणिके हैं।
१२५. प्र० - श्रेणि चढ़नेका पात्र कौन है ?
उ०- सातवें गुणस्थानवर्ती क्षायिक सम्यग्दृष्टी और द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी ही श्रेणि चढ़ सकते हैं । क्षायिक सम्यग्दृष्टी उपशम श्रेणि भी चढ़ सकता है और क्षपकश्रेणि भी चढ़ सकता है किन्तु द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी केवल उपशमश्रेणि ही चढ़ सकता है, क्षपकश्रेणि नहीं चढ़ सकता तथा प्रथमोपशम सम्यग्दृष्टी और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टी श्रेणि नहीं चढ़ सकते । १२६. प्र० -- प्रथमोपशम सम्यक्त्व अथवा क्षायोपशमिक सम्यक्त्ववाला किस विधिसे श्रेणि चढ़नेका पात्र बन सकता है ?
उ०- प्रथमोपशम सम्यक्त्ववाला प्रथमोपशम सम्यक्त्वको छोड़कर क्षायो: पशमिक सम्यक्त्वको ग्रहण करे। फिर अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण रूप परिणामोंके द्वारा पहले अनन्तानुबन्धीकषायका विसंयोजन करे और अन्तर्मुहूर्त काल तकका विश्राम लेकर पुनः अधःकरण आदि रूप परिणामों द्वारा या तो दर्शनमोहनीयकी तीन प्रकृतियोंका उपशम करके द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टी हो जाये या उनका क्षय करके क्षायिक सम्यग्दृष्टो हो जाये । तब श्रेणि चढ़नेका पात्र हो सकता है ।
१२७. प्र० - विसंयोजन किसे कहते हैं ?
उ०- अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभके कर्म परमाणुओंको बारह कषाय और नव नोकषायरूप परिणमानेको विसंयोजन कहते हैं ।
१२८. प्र० - अधःकरण किसको कहते हैं ?
उ०- जिस करण में ऊपर के समय में वर्तमान जीवके परिणाम जैसो विशुaarat लिये हुए हों, वैसी ही विशुद्धताको लिये हुए परिणाम नोचे के समय में वर्तमान जीवके भी होते हैं उसे अधःप्रवृत्तकरण कहते हैं। जैसे—दो जोवोंने
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