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________________ १०४ करणानुयोग-प्रवेशिका संज्वलन क्रोध, आठवेमें संज्वलन मान और नौवें भागमें संज्वलन माया इस प्रकार नौवें गुणस्थानमें छत्तीस प्रकृतियोंको सत्व व्युच्छित्ति होती है। यह सत्ब व्युच्छित्ति क्षपक श्रेणिवालोंके ही होती है। ७००.प्र०-दसवें गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है ? उ०-दसवेंमें नौवें गुणस्थानकी तरह उपशम श्रेणीवाले द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टीके १४२ और क्षायिक सम्यग्दृष्टिके १३६ का सत्त्व रहता है तथा क्षपक श्रेणिवालेके नौवें गुणस्थानमें जो १३८ प्रकृतियोंका सत्त्व है उनमेंसे व्युच्छिन्न हुई ३६ प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रही १०२ प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है। ७०१. प्र०-दसवें गुणस्थानमें किन प्रकृतियोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति होती है । उ.-एक संज्वलन लोभको व्युच्छित्ति होती है।। ७०२. प्र०-ग्यारहवें गुणस्थानमें सत्त्व कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ-दसवें गुणस्थानकी तरह द्वितीयोपशम सम्यग्दृष्टिके १४२ और क्षायिक सम्यग्दृष्टीके १३६ का सत्त्व रहता है । इस गुणस्थानमें क्षपक श्रेणि नहीं है। ७०३. प्र०-बारहवें गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है ? उ०-दसवें गुणस्थानमें क्षपक श्रेणि वालेके जो १०२ प्रकृतियोंका सत्त्व होता है उनमें व्युच्छिन्न प्रकृति संज्वलन लोभको घटानेपर शेष १०१ प्रकृतियोंका सत्त्व होता है। ७०४. प्र०-बारहवें गुणस्थानमें सत्त्व व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंको होती है ? उ० -- बारहवें गुणस्थानमें उदय व्युच्छित्तिकी तरह पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, निद्रा, प्रचला और पाँच अन्तराय इन सोलह प्रकृतियोंकी सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। ७०५. प्र०-तेरहवें गुणस्थानमें सत्त्व कितनी प्रकृतियोंका होता है ? उ०-बारहवें गुणस्थानमें जो १०१ का सत्त्व कहा है उनमेंसे व्युच्छिन्न १६ प्रकृतियोंको घटानेपर शेष रहीं ८५ प्रकृतियोंका सत्त्व तेरहवें सयोगकेवली गुणस्थानमें होता है।। ७०६. प्र०-चौदहवें गुणस्थानमें कितनी प्रकृतियोंका सत्व रहता है ? .. उ-चौदहवें गुणस्थानमें तेरहवें गणस्थानको तरह ८५ प्रकृतियोंका सत्त्व रहता है परन्तु उपान्त्य समयमें ७२ और अन्तिम समयमें १३ प्रकृतियोंकी सत्ताके व्युच्छिन्न (नाश) हो जानेसे जोवका मोक्ष हो जाता है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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