SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करणानुयोग-प्रवेशिका प्रमाण है और उससे भी असंख्यातगुणा उद्वेलनसंक्रमण भागहारका प्रमाण ५९८. प्र०-उपशम करण किसको कहते हैं ? उ०-विवक्षित प्रकृतिके जो निषेक उदयावलीसे बाहर हैं, उनके परमाणुओंको उदयावलीमें आनेके अयोग्य करने का नाम उपशम अथवा उपशान्त करण हैं। ५९९. प्र.-उपशमके कितने भेद हैं ? उ०-दो हैं-एक अन्तरकरणरूप उपशम और दूसरा सदवस्थारूप उपशम । ६००. प्र०-अन्तरकरणरूप उपशम किसको कहते हैं ? उ०-अन्तरकरणका स्वरूप पहले कहा है, अन्तरकरणके द्वारा आगामी कालमें उदय आने योग्य कर्म परमाणुओंको आगे-पीछे उदय आने योग्य करने का नाम अन्तरकरणरूप उपशम है। ६०१.३०-सववस्थारूप उपशम किसको कहते हैं ? । 3०-आगामी कालमें उदय आने योग्य निषेकोंके सत्तामें रहनेका नाम सदवस्थारूप उपशम है। ६०२. प्र०-उपशम भाव और उपशान्त करणमें क्या अन्तर है ? उ०-उपशम भाव तो मोहनीय कर्मका हो होता है किन्तु उपशान्तकरण सब प्रकृतियोंका होता है तथा उपशान्तकरण आठवें गुणस्थान पर्यन्त ही होता है किन्तु उपशम भाव ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त पाया जाता है। ६०३. प्र०-निधत्तिकरण किसको कहते हैं ? ___उल-विवक्षित प्रकृतिके परमाणुओंका संक्रमण करनेके और उदयावलीमें आनेके योग्य न होना निधत्तिकरण है। ६०४ प्र०-निकाचितकरण किसको कहते हैं ? उ०-विवक्षित प्रकृतिके परमाणुओंका संक्रमण करने अथवा उदयावलीमें आनेके अथवा उत्कर्षण अथवा अपकर्षण करनेके योग्य न होना निकाचित. करण है। ६०५. प्र०-कर्मोकी बन्धयोग्य प्रकृतियां कितनी हैं ? उ०-पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, छब्बीस मोहनीय, चार आयु, सड़सठ नाम, दो गोत्र और पांच अन्तराय-ये सब एक सौ बीस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy