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________________ करणानुयोग-प्रवेशिका ५९१. प्र०-उद्वेलन प्रकृतियां कौन सी हैं ? उ०-आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग, सम्यक्त्व प्रकृति, मिश्र प्रकृति, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, उच्च गोत्र, मनुष्यगति, मनुष्यगत्वानुपूर्वी ये तेरह उद्वेलन प्रकृतियाँ हैं। ५९२. प्र०- उद्वेलन प्रकृतियोंकी उद्वेलना कौन करता है ? उ०-शुरूकी चार प्रकृतियोंकी उद्वेलना तो चारों गतियोंके मिथ्यादृष्टि जीव करते हैं। फिर छै प्रकृतियोंकी उद्वेलना एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीव करते हैं। शेष तीन प्रकृतियोंकी उद्वेलना तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव करते हैं। ५९३. प्र०-विध्यातसंक्रमण किसको कहते हैं ? उ०-मन्द विशुद्धि वाले जीवके जिनका बन्ध नहीं पाया जाता, उन विवक्षित प्रकृतियोंके परमाणओंमें विध्यात भागहारका भाग देनेपर एक भाग मात्र परमाणु जहाँ अन्य प्रकृतिरूप परिणमन करते हैं उसे विध्यातसंक्रमण कहते हैं। ५९४. प्र०-अधःप्रवृत्तसंक्रमण किसको कहते हैं ? .. उ०-बंधनेवाली प्रकृतियोंमें अधःप्रवृत्त भागहारका भाग देने पर एक भाग मात्र परमाणु जहाँ बंधको प्राप्त अन्य प्रकृति रूप परिणमन करते हैं उसे अधःप्रवृत्तसंक्रमण कहते हैं। ५९५. प्र०-गुणसंक्रमण किसको कहते हैं ? उ०-विवक्षित अशुभ प्रकृतियोंके परमाणुओंमें गुण संक्रमण भागहारका भाग देने पर जहाँ प्रति समय असंख्यातगुणे-असंख्यातगुणे परमाणु अन्य प्रकृति रूप परिणमन करते हैं उसे गुणसंक्रमण कहते हैं। ५९६.३०-सर्वसंक्रमण किसको कहते हैं ? उ०-प्रति समय विवक्षित प्रकृतिके परमाणु अन्य प्रकृति रूप परिणमन करते-करते जहाँ अन्त समयमें अन्तके काण्डककी अन्तिम फाली रूप सभी परमाणु अन्य प्रकृतिरूप परिणमन करते हैं उसे सर्वसंक्रमण कहते हैं। ५९७. प्र०-भागहारोंका प्रमाण क्या है ? उ०-सर्वसंक्रमण भागहारका प्रमाण तो एक है। उससे असंख्यात गुणा गुणसंक्रमण भागहारका प्रमाण है। उससे भी असंख्यात गुणा उत्कर्षण और अपकर्षण भागहारका प्रमाण है। उससे भी असंख्यातगुणा अधःप्रवृत्तसंक्रमण भागहारका प्रमाण है। उससे भी असंख्यातगुणा विध्यातसंक्रमण भागहारका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003835
Book TitleKarnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1987
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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