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चरणानुयोग-प्रवेशिका
उ०- हिंसा प्रधान धर्मको कुधर्म कहते हैं ।
९. प्र० - सम्यक् चारित्र किसे कहते हैं ?
उ० – सम्यक्ज्ञान मूलक आचरणको सम्यक् चारित्र कहते हैं ।
१०. प्र०—– सम्यक् चारित्र किसलिये और कब धारण किया जाता है ?
उ० - मोहरूपी अन्धकारके हट जानेपर जब सम्यग्दर्शनके साथ ही साथ सम्यग्ज्ञान की भी प्राप्ति हो जाती है तब राग और द्वेषको दूर करनेके लिये साधु पुरुष सम्यक्चारित्रको धारण करता है ।
११. प्र० – सम्यक्चारित्र के कितने भेद हैं ?
उ०- दो मूल भेद हैं- देशचारित्र और सकलचारित्र ।
१२. प्र० – देशचारित्र और सकलचारित्रका कौन पालन करता है ? उ०- समस्त परिग्रहसे रहित साधुओंके सकलचारित्र होता है और परिग्रही गृहस्थों के देशचारित्र होता है ।
१३. प्र० – देशचारित्र के कितने भेद हैं ?
उ०- दो भेद हैं- मूलगुण और उत्तरगुण । १४. प्र० - मूलगुण कितने हैं ?
उ०- आठ हैं - मद्यत्याग, मांसत्याग, मधुत्याग और पांच प्रकारके उदुम्बर फलोंका त्याग । सोमदेव सूरिके मतसे ये आठ मूलगुण हैं । स्वामी समन्तभद्राचार्य ने हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह ये पांच पाप और मद्य, मांस, मधुके त्यागको अष्ट मूलगुण कहा है और स्वामी जिनसेनाचार्य ने पांचों पाप, मद्य, मांस और जुआके त्यागको आठ मूलगुण कहा है।
१५. प्र० - मूलगुण किसे कहते हैं ?
उ०- सबसे प्रथम पालन करने योग्य गुणोंको मूलगुण कहते हैं ।
१६. प्र० - गृहस्थों के उत्तर गुण कितने हैं ?
उ०- बारह हैं - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत । १७. प्र० - व्रती किसे कहते हैं ?
उ० - जो निःशल्य होकर देव शास्त्र - गुरु की साक्षी पूर्वक व्रतों को धारण करता है वही व्रती कहा जाता है ।
१८. प्र० - - शल्य किसे कहते हैं ?
१०. रत्न० श्रा०, श्लो० ४७ ।
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११, १२. रत्न० श्रा० श्लो० ५० । १६. रत्न० श्रा०, श्लो० ५१ ।
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